गौस खान की वीरता और बलिदान 1857 के विद्रोह की स्वतंत्रता की भावना और भारतीय सैनिकों के साहस का प्रतीक
गुलाम गौस खान रानी लक्ष्मीबाई की सेना में एक कुशल तोपची और एक वफादार सिपाही थे। वे अपनी अद्भुत तोप चलाने की कला और 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में अपने शौर्य के लिए जाने जाते हैं।
गौस खान का जन्म झांसी के पास कैरार नगर में हुआ था। उनके परिवार का इस क्षेत्र में लंबा इतिहास रहा है। गौस खान ने युवावस्था में ही तोप चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था और झांसी के राजा, श्रीमंत रघुनाथ राव की सेना में तोपची के रूप में भर्ती हुए। रानी लक्ष्मीबाई के शासनकाल में, गौस खान उनकी सेना में शामिल हो गए और जल्दी ही अपनी वीरता और कौशल के लिए ख्याति प्राप्त कर ली।
1857 के विद्रोह के दौरान, गौस खान रानी लक्ष्मीबाई के सबसे भरोसेमंद सिपाहियों में से एक बन गए। उन्होंने रानी के सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से तोपखाने के संचालन में। गौस खान की अचूक निशानाबाजी और रणनीतिक कौशल ने अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया।
3 अप्रैल 1858 को, गौस खान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में वीरगति प्राप्त कर गए। उनकी शहादत ने झांसी की रानी और उनके सैनिकों का मनोबल बढ़ा दिया। गौस खान को उनकी वीरता और देशभक्ति के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
आज भी गौस खान को झांसी में एक वीर सैनिक और रानी लक्ष्मीबाई के वफादार अनुयायी के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनकी कब्र झांसी किले में स्थित है, और उनकी तोपें, भवानीशंकर और कदक बिजली, किले के परिसर में संरक्षित हैं। गौस खान की वीरता और बलिदान 1857 के विद्रोह की स्वतंत्रता की भावना और भारतीय सैनिकों के साहस का प्रतीक है।
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स्रोत: फेसबुक
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