भारतवासियों को बंग्लादेश की स्थिति पर गहराई से सोचना चाहिए। उसका असर भारत पर भी अनेक रूपों में पड़ेगा। लेकिन सबसे गम्भीर पहलू यह है कि बिखरे हुए आंदोलनकारी और संगठित इस्लामी तत्ववादियों के बीच भविष्य को लेकर जो रस्साकशी है उसमें बंग्लादेश की मूल भावना और उसके सामाजिक जीवन का विनाश तय है। इसका एक ही उदाहरण काफ़ी है कि जन-असन्तोष रोजगार और आरक्षण की पक्षपातपूर्ण को लेकर है लेकिन आंदोलन में शामिल इस्लामी छात्र-संगठन ने हिंदुओं पर व्यापक हमले किये। आम नागरिक मिलजुलकर मंदिरों की रक्षा कर रहे थे लेकिन इस्लामी छात्र संगठन मंदिरों पर हमले कर रहे हैं।
बंग्लादेश का आविर्भाव एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में हुआ था लेकिन पहले से मौजूद इस्लामी तत्ववादियों ने सेना की मदद से बार-बार तख्तापलट किया।
देखने की बात है कि जनअसंतोष के उबाल के दौरान निहित स्वार्थ की शक्तियाँ अल्पसंख्यकों और कमज़ोरों पर हमले करते हैं। यह भारत में देखिए, पाकिस्तान में देखिए, बांग्लादेश में भी देखिए।
इससे पता चलता है कि किसी भी समय इतिहास की करवट में पहले से निश्चित नहीं होता कि कल क्या होगा। परस्पर विरोधी ताकतें दिशा तय करने के लिए टकराती हैं। जिसके पास अधिक कुशल रणनीति, सक्षम संगठन और सामाजिक समर्थन होता है, वह विजयी होता है।
आधुनिक संसार में एक बात और है। जनता की इच्छा एक तरफ, सेना की मर्ज़ी दूसरी तरफ; राष्ट्रीय भावना एक तरफ, अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप दूसरी तरफ--परिवर्तन की दिशा किसी एक बात से तय नहीं होती।
राजकीय भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के बीच तनाव, पक्षपातपूर्ण आरक्षण नीति और सामाजिक सद्भाव के बीच तनाव, भारत जौसे विकासशील देशों से सम्बंध और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से अमरीकी दबाव के बीच तनाव--काफ़ी उलझी हुई परिस्थिति है। यह उल्लेख करने की बात है कि बंग्लादेश में इस्लामी तत्ववादियों के ज़रिए इतना बड़ा उलटफेर करने की "योजना" लंदन में बनी थी और लंदन में शरण मिलने से मना हो जाने पर शेख़ हसीना को अनिश्चितकाल तक भारत में रहना होगा।
हम भारत की इस नीति का समर्थन करते हैं क्योंकि यह हमारी अतिथि सत्कार की परंपरा के अनुरूप भी है और पड़ोसी देश के साथ मानवीय सद्भाव की आधुनिक भावना के अनुरूप भी।
यह बात भी उल्लेखनीय हैं कि बंग्लादेश में तख्तापलट करने वाले कारक हैं: इस्लामी तत्ववादी, सेना, दक्षिणपंथी राजनीतिक संगठन और उनके मददगार हैं कंजरवेटिव (रुढ़िवादी) ब्रिटेन एवं अमरीका; उसी ब्रिटिश संसद में हसीना की भांजी लेबर पार्टी की सांसद हैं! अफ़सोस की बात है कि ब्रिटेन की कंजरवेटिव सरकार के निवर्तमान प्रधानमंत्री भारतीय मूल के ऋषि सुनक की नितियाँ घोर विनाशकारी रही हैं!
बंग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, वह न केवल बंगलादेशियों के लिए वरन पूरे एशिया महाद्वीप के लिए अत्यंत घातक है। इसलिए भारतवासियों को उदासीन रहने की ज़रूरत नहीं है, गहराई से सोचने की ज़रूरत है।
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