नर्मदा घाटी के विस्थापितों ने सत्याग्रही, अहिंसक संघर्ष के द्वारा हजारों का पुनर्वास हासिल करने के बाद भी कुछ हजार परिवार आज भी भुगत रहे हैं विस्थापन से वंचना| इसमें कानून, नीति के साथ सर्वोच्च न्यायालय के 2000, 2005, 2017 के प्रमुख आदेश तथा कुछ उच्च न्यायालय और शिकायत निवारण प्राधिकरण के आदेशों का भी उल्लंघन हुआ है और आज भी जारी है!
इस परिप्रेक्ष्य में लोकसभा, और मध्यप्रदेश विधानसभा में मान्यवर सांसद और विधायकों ने उठाये सवालों को झूठे जवाब मिलने की खबर बहुत ही धक्कादायक है| इसमें न केवल जनप्रतिनिधियों की बल्कि जनतंत्र की अवमानना है| विस्थापितों के साथ चर्चा में दिये गये आश्वासनों का तथा 'पेसा' कानून के तहत् ग्रामसभाओं ने पारित किये प्रस्तावों पर पालन नहीं होना भी, जनतांत्रिक प्रक्रिया पर आघात है!
लोकसभा में मा. रामजीलाल सुमान जी, वरिष्ठ सांसद ने पूछे सवालों को केन्द्रीय जलशक्ति मंत्रालय के राज्यमंत्री राजभूषण चौधरी जी ने जुलाई 2024 में दिये गये जवाब में न केवल प्रश्न का गलत या अधूरा अर्थ लगाया गया है; किंतु आंकड़ाकीय जानकारी भी गलत दी है| निम्न गलतीयों पर ध्यान दीजिये:-
1. तीनों राज्यों के हजारों विस्थापितों की तथा उनमें से पुनर्वास पूरा नहीं हुआ, ऐसे परिवारों की संख्या चाहते हुए, 244 गांव और 1 नगर के बदले तीनों राज्य मिलकर 230 गावों में ही डूब आयी, यह जवाब दिया जबकि 244 गांव और 1 नगर सरदार सरोवर के 214 किलोमीटर तक फैले डूबक्षेत्र में आते हैं और सभी ने 2023 तक डूब का सामना किया है| धरमपुरी को नगर होकर भी स्वतंत्र रूप में चिन्हित नहीं किया जाना भी गलत है| यह संख्या मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात की होते हुए, जवाब में कुल विस्थापितों की संख्या मात्र 32552 बतायी है, जबकि 2008 में यह संख्या 46,357 थी, यह NCA की रिपोर्ट बता चुकी है! संख्या को कम करना BWLs मध्यप्रदेश में बदलने से ही हुआ खेल है!
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (NCA) की वार्षिक रिपोर्टों में राज्य के नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से ही प्राप्त जानकारी के आधार पर दी गई संख्याएं ही सच्चाई सामने लाती है| 2008 में मध्यप्रदेश में सरदार सरोवर के पूर्ण जलाशय स्तर पर पुनर्वसित बताये गये 32,142 परिवारों की संख्या 2010 में 19,039 इतनी कम कैसी हुई? क्या 13103 परिवारों को पुनर्वसित करने के बाद फिर विस्थापित किया गया? जवाब है, 2007 में NCA से गठित समिति ने, 1984 में CWC ने तय किये बैकवॉटर लेवल्स (BWLs) बदलने का खेल! 2015 से 2008 की तुलना में 16196 की संख्या कम कर दी गई और सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र द्वारा 15946 परिवार, BWLs पुनरीक्षित करने के कारण 'डूब के बाहर' किये जाने की जानकारी पेश की गयी! 2023 के वर्षाकाल में इनमें से ही हजारों परिवार डूब से घर, सामान, मवेशी और कुछ इंसान तथा बिना भूअर्जन खेती- फसल बर्बाद होना भुगत चुके; जिसका भी कोई जिक्र तक सांसदों तक नहीं पहुंचा! उसी साल, 2015 में NCA की वार्षिक रिपोर्ट में मध्यप्रदेश विस्थापित कुल 37,756 और मध्यप्रदेश में 32221 परिवार पुनर्वसित हुए, बताये गये और 2016 में फिर पुनर्वसितों की संख्या उतर आयी, 19039 और 2017 से 2021 तक 18,063 पर! 2021 के बाद आजतक NCA की कोई वार्षिक रिपोर्ट सार्वजनिक दायरे में, वेबसाइट पर नहीं आयी, तो वह तैयार ही नहीं हुई, यह जवाब हमें मिला!
1. 'पुनर्वास बाकी' के वर्ग में शिकायत निवारण प्राधिकरण में (GRA), शिकायत निवारण प्राधिकरण के अपीलिय मंच में (GRA-DB), उच्च न्यायालय में तथा सर्वोच्च अदालत में प्रलंबित प्रकरणों की संख्या नहीं बतायी जाती है| यह संख्या 6500 से अधिक है! क्या इसके अलावा भी अधिकारी और मंत्रियों के पास आवेदने, फाइलें प्रलंबित नहीं है, निर्णय, जांच या सब होकर हस्ताक्षरित होने के लिए? प्रलंबित मुद्दों की जिलावार सूची न केवल हमारे आंदोलन की ओर से, हर अधिकारी महोदय को प्रस्तुत करते बल्कि उनमें से हर मुद्दे पर पहाड़ी और निमाड़ी विस्थापितों के आवेदन और कागजात देकर चर्चा भी करते आये हैं| आयुक्त महोदय के स्तर पर 2022 अगस्त से जून 2024 तक आखिरी चर्चा होकर भी जिम्मेदार अधिकारी मंत्रालय तक ऐसा गलत जवाब पहुंचा रहे हैं, यह आश्चर्य है| यह भी नहीं बताया कि न्यायालय में प्रलंबित प्रकरणों के आधार पर सैकड़ो परिवारों का निर्णय रोक के रखा गया है; जैसे महिला खातेदारों का, जिनका पुरुष खातेदारों के समान अधिकार होने का आदेश GRA के भूतपूर्व अध्यक्ष दे चुके हैं और तो और, हजारों प्रकरण प्रलंबित होते हुए, बांध और जलस्तर बढ़ाने के लिए 'सबका पुनर्वास सबका विकास' का दावा क्या सत्य है?
2. मान्यवर सांसद महोदय को मान्यवर मंत्री महोदय जवाब दे चुके हैं कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (NCA) ने दी जानकारी अनुसार, 2023 वर्षाकाल में CWC ने 1984 में तय किये जलस्तर तक किसी भी गाव में पानी डूब क्षेत्र में नहीं चढ़ा था! यह तो गलत साबित होता है, शासकीय कागजातों से, जो बड़वानी और धार जिले के उपलब्ध है; खरगोन जिले में भी 'डूब से बाहर' बताया गया महेश्वर का किला आधा डूब गया था, 2023 में ही| क्या यह अवैधता और जलनियमन में अक्षमता को छुपाने के लिए और 15946 परिवारों का पुनर्वास अधूरा छोड़ने के लिए ही है? गावों में 15946 परिवारों को डूब से बाहर करने की घोषणा नहीं की थी, इस जवाब का अर्थ क्या होता है, जबकि उन परिवारों को यह लिखित जवाब भी मिल चुका है!
3. आज भी कई गावों में, टीनशेड्स में (2019 में शासन से डूब से निकालकर रखे गये) और शासकीय भवनों में (विशेषत: पिछले साल से) विस्थापित रहने के लिए मजबूर हैं, पुनर्वास के सभी लाभ पात्रता अनुसार न मिलने पर| किसी को मुआवजा, खेती के बदले 60 लाख रुपए वयस्क पुत्रों को पुनर्वास, मकान निर्माण के लिए 5.80 लाख रुपए का अनुदान, मछुआरों को जलाशय पर संघ के पंजीयन के साथ अधिकार, कईयों को घर के लिए भूखंड, कुम्हार, दुकानदारों को भूखंड, केवटो को किनारे पर जेटी... बाकी होते हुए, 'मूलगांव में रहने वाले सभी परिवारों का पुनर्वास हो चुका है' यह विधान असत्य है|
4. पुनर्वास स्थलों पर, मध्यप्रदेश के 83 और महाराष्ट्र के 14 में से 13, सभी सुविधाएं उपलब्ध की गयी है, यह भी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के, (2007, 2023) GRA, मध्यप्रदेश के आदेशों के खिलाफ और धरातल की स्थिति पर शासन और विस्थापितों के बीच चर्चा जारी होते हुए भी, तद्दन झूठापन जवाब में झलक रहा है जबकि अधिकारी उर्वरित कार्यों के लिए करीबन 1000 करोड़ मांग चुके हैं| गुजरात शासन, नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसले के खिलाफ, पुनर्वास का पूरा खर्च उठाने का विरोध करते हुए तीनों राज्यों में हिस्सा देने का प्रस्ताव रखते, 'मध्यस्थता' के लिए मजबूरी और देरी थोप रही है!
5. '2023 में सर्वोच्च अदालत के फैसलों के अनुसार 138.68 मीटर तक पानी भर गया' यह जवाब भी अधूरा और फसाने वाला है| एक तो, हर न्यायालयीन आदेश कहता है कि नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसले का पालन होना है| फैसला कहता है किसी भी परिवार की कोई भी संपत्ति, बिना संपूर्ण पुनर्वास तात्कालिक या कायमी रूप से डूबायी नहीं जा सकती है| दूसरी बात यह भी है की CWC का 2018 के मेन्युअल- नियमावली के अनुसार जलाशय सही मात्रा में रिक्त न रखना और ऊपरी बांधों से जल नियमन समय पर न करना, नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण 'जलाशय निगरानी समिति' का अपयश है!
यह हकीकत आज की संसदीय प्रणाली में आयी दरार तो बताती ही है लेकिन नियमअनुसार इसे Breach of Privilege याने हकभंग- अधिकार की अवहेलना मानते हुए सांसदों ने, संसद के अंदर और बाहर भी आवाज उठाना जरूरी है|
मध्यप्रदेश विधानसभा में भी कहां मिले हैं जवाब?
मा. सुरेंद्र सिंहजी बघेल, डॉ. हीरालालजी अलावा, और राजेंद्र मंडलोईजी ने विधानसभा सत्रों में सवाल खड़े किये, 'बिना पुनर्वास डूब' अवैध होने पर, लेकिन आज तक कहां मिले हैं जवाब? कहां लिये गये हैं निर्णय? BWLs का पुनरीक्षण रद्द करके, 'डूब से बाहर' किये गये परिवारों को आज तक 2023 में हुए नुकसान की पूरी भरपाई नहीं मिली है, तो पुनर्वास भी पूरा नहीं हुआ है| क्या इस साल फिर से पुनरावृत्ति होगी 2023 की आपदा की?
यह सब संसद में भी 'असत्य' हावी होने की हकीकत दुर्लक्षित नहीं कर सकती विस्थापित जनता और संवेदनशील नागरिक भी! सबसे विशेष बात यह भी है कि सभी विस्थापितों का संपूर्ण पुनर्वास हो चुका है, यह बताने की कोशिश की पोलखोल, बड़वानी के सांसद गजेंद्र पटेल जी ने भी मुख्यमंत्री जी को दिये ज्ञापन में, उर्वरित कार्यों की दी हुई सूची से भी साबित होती है| मा. मुख्यमंत्री जी, "आप तो जवाब दीजिये, आपके सांसद महोदय को और न्याय करें| राज्यहित में NCA में हर मुद्दे पर कानूनी निर्णय लीजिये और जरूरी वित्तीय राशि, राज्य स्तर से ही फिलहाल आबंटित करें| 1979 से चले सरदार सरोवर पर 45 साल पूरे होते हुए, कुछ ही महीनों में पुनर्विचार होगा, ट्रिब्यूनल फैसले पर भी!
कृपया ध्यान में रखिये की मध्यप्रदेश भी खोएगा अपना सम्मान, नहीं साध पाएगा, राज्य का और विस्थापितों का भी हित! आज भी बिजली के लाभ से वंचित है मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र, तो भविष्य में दोनों राज्य नर्मदा के पानी पर हक से भी होंगे वंचित और शोषित!"
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*नर्मदा बचाओ आंदोलन
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