--- पुलिस हिरासत में आदिवासी की मौत: धर्मेंद्र दांगोड़े का परिवार खंडवा एसपी कार्यालय पहुंचा, दोषी पुलिस कर्मियों के गिरफ्तारी की उठाई मांग – आदिवासी संगठनों ने कार्यवाही न होने पर पूरे निमाड में आदिवासी आंदोलन की दी चेतावनी...
--- पुलिस हिरासत में आदिवासी की मौत का खंडवा-खरगोन में तीन साल में यह तीसरा मामला – इससे पहले भी पुलिस कर्मियों को दोषी पाए जाने के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं हुई है – मध्य प्रदेश बन चुका है आदिवासियों पर अत्याचार का गढ़...
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धर्मेंद्र दांगोड़े की खंडवा के थाना पंधाना में हुई हत्या के संबंध में, 29.08.2024 को धर्मेंद्र के परिवार सहित आदिवासी संगठन खंडवा एसपी कार्यालय पहुंचे और धर्मेंद्र दांगोड़े की हत्या के लिए जिम्मेदार पुलिस कर्मियों की गिरफ्तारी की मांग उठाई । परिवार के साथ खंडवा, खरगोन और बुरहानपुर के जागृत आदिवासी दलित संगठन, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस), आदिवासी एकता परिषद, भारत आदिवासी पार्टी एवं टंटीया मामा भील समाज सेवा मिशन के सदस्य ने ज्ञापन सौंप कर दोषी पुलिस कर्मियों पर हत्या का मामला दर्ज कर गिरफ्तार करने की मांग उठाई । आदिवासी संगठनों द्वारा कलेक्टर एवं एसपी से मिलकर परिवार को संरक्षण देने एवं आर्थिक सहायता देने की भी मांग उठाई । पुलिस एवं प्रशासन ने न्यायिक जांच के हवाले परिवार को मात्र मौखिक आश्वासन ही दिए, जिसके जवाब में कार्यवाही न होने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है ।
दरअसल, बुधवार शाम 21.08.2024 की रात 9.30 बजे, खंडवा पंधाना थाना के कुछ पुलिसकर्मी अचानक से धर्मेंद्र पिता गुमान दांगोड़े के घर घुसे और उसे जबर्दस्ती अपने साथ ले गए । धर्मेंद्र एक मिस्त्री था – जिस पर आज तक न कोई केस था न किसी भी प्रकार का आपराधिक रेकॉर्ड था । उनकी पत्नी, रानु बाई को न इसकी कोई सूचना दी गई, न ही धर्मेंद्र का विधिवत गिरफ्तारी पंचनामा बनाया गया । अगले दिन भी रानु बाई को धर्मेंद्र से नहीं मिलने दिया गया । धर्मेंद्र को रात भर पीट कर, अगले दिन उसके मूल गाँव, ग्राम नेमित, पंचायत देवित बुजुर्ग में ले गए । गाँव वालों ने बताया कि धर्मेंद्र गाड़ी से उतरने की भी हालत में नहीं था । बिना पंचनामा बनाए उसके घर की तलाशी ली गई, जहां पुलिस को कुछ नहीं मिला । इसके बाद पुलिस धर्मेंद्र के घर, दीवाल गाँव में गई, जहां एक बार फिर पुलिस को कोई भी चोरी का सामान नहीं मिला । परिवार ने दावा किया है कि पुलिस ने धर्मेंद्र के कमाई के 2000 रुपए यह कहते हुए लिए कि आज इसी पैसे की दारू पीकर इसे मारेंगे!
अगले दिन शुक्रवार को भी परिवार को धर्मेंद्र से मिलने नहीं दिया गया, लेकिन पत्नी रानु बाई ने 5 पुलिस कर्मियों को धर्मेंद्र को लोहे की डंडे से मारते हुए देखा । पुलिस अनुसार, उसी दिन धर्मेंद्र ने रात 10 बजे चादर फाड़ कर, फांसी का फंदा बना कर आत्महत्या की – परंतु अगली सुबह 5 बजे तक उसके परिवार को सूचना भी नहीं दी गई । पोस्ट मोर्टम के दौरान परिवार को मौजूद नहीं रहने दिया गया, लेकिन गाँव के कुछ लोग मौजूद थे । वे बताते हैं कि – धर्मेंद्र के दोनों पैरों के तलवे मार-मार कर काले कर दिए गए थे । बाया पैर पूरी तरह से कुचला जा चुका था और उसके बाएं जांग पर लाठी की मार के 5 सपाटे (पट्टे नुमा) के निशान थे । उसके पुट्ठों पर भी मार के लाल-काले निशान थे । बाएं हाथ की हथेली और उँगलियाँ टूटी थी और बुरी तरह हुई मार के कारण काली पड़ गई थी । उसके बाय बाजू पर भी चोट के काले-नीले निशान थे । एक सपाटे का निशान उसकी पीट से उसके पसलियों तक भी थी, और पूरी पीठ काली हो चुकी थी । धर्मेंद्र के सर और गले के पीछे भी बड़ी चोट का निशान था ।
अतः मामले में कुछ तथ्य साफ है – धर्मेंद्र को अवैध रूप से, बिना डीके बसु दिशानिर्देशों का पालन किए, बिना परिवार को सूचित किए उसके घर से देर रात को उठाया गया । उसके घर की बिना पंचनामा बनाए तलाशी ली गई । धर्मेंद्र को बिना कोर्ट में पेश किए कई दिनों तक अवैध बंधक बना कर थाने में ही रखा गया, जहां परिवार को उसे मिलने नहीं दिया गया । थाने में धर्मेंद्र के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट हुई, जिसके बाद शुक्रवार रात को धर्मेंद्र की मौत हो गई ।
मध्य प्रदेश आदिवासी पर अत्याचारों का केंद्र बनता जा रहा है राष्ट्रिय आपराधिक रेकॉर्ड ब्यौरो के अनुसार, 2022 में मध्य प्रदेश में ही आदिवासियों पर अत्याचार के 2979 मामले दर्ज हुए थे – यानि हर दिन 8 मामले दर्ज हुए, जो कि देश में सबसे ज़्यादा है । मात्र खंडवा – खरगोन जिलों में एक आदिवासी की पुलिस हिरासत की मौत में यह तीसरा मामला है । इससे पहले, 2021 में दो मामले हुए हैं, जहां पर जांच पूरी हो जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है । कुछ ही हफ्तों पहले, गुना में भी एक पारधी युवक की थाने में मौत हुई है । मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हिरासत में हो रही मृत्यु को लेकर उदासीनता हिरासत में वंचित समुदायों के खिलाफ अवैध प्रताड़ना, बर्बर मारपीट करने वाले पुलिस कर्मियों को संरक्षण देकर, बढ़ावा देने का काम कर रही है ।
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*जागृत आदिवासी दलित संगठन
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