सौर ऊर्जा सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों में से एक है। ‘भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास ऐजेंसी लिमिटेड’ (आईआरईडीए) के अनुसार भारत 5000 ट्रिलियन किलोवाट सौर ऊर्जा उत्पादन करने में सक्षम है। अगर इस ऊर्जा का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाए तो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता काफी हद तक कम होगी और ऊर्जा उत्पादन में शामिल कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। देश की कुल सौर क्षमता 7,48,990 मेगावाट है परन्तु नंवबर 2024 तक 92120 मेगावाट क्षमता ही स्थापित की जा सकी है, जबकि सरकार ने 2030 तक 2,92,000 मेगावाट का लक्ष्य निर्धारित किया है।
‘विश्व ऊर्जा दृष्टिकोण रिपोर्ट 2024’ के अनुसार भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों और नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता को विशेष रूप से रेखांकित किया है। केन्द्र सरकार अब तक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 12 से 13 प्रतिशत तक ही पहुंच पाई है, जबकि जगह-जगह सोलर पार्क बनाने से जल और ताप विद्युत पर निर्भरता कम होगी। 20 वें ‘इलेक्ट्रिक पावर सर्वेक्षण’ के अनुसार 2030 तक भारत में घरेलू बिजली की मांग दोगुना होने की उम्मीद है। ‘काउंसिल ऑफ एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (सीईईडबल्यू) के अध्ययन के अनुसार शहरी और ग्रामीण इलाकों में 25 करोड़ घरों की छतों पर 637 गीगावाट (637000 मेगावाट) रूफटॉप सोलर लगाने की क्षमता मौजूद है। इससे सिर्फ एक - तिहाई रुफटाप सोलर लगाने से घरेलू उर्जा की मांग लगभग (लगभग 310 अरब किलोवाट/ऑवर) पूरी हो सकती है।
रुफटॉप सोलर की मांग में तेजी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जन-जागरूकता बढानी चाहिए। व्यापक संभावनाओं के बाबजूद कीमत से जुङी आशंकाओं के कारण इसे अपनाने की इच्छा सीमित बनी हुई है। ‘सीईईडबल्यू’ के अनुसार देश में सिर्फ 5 प्रतिशत घरेलू बिजली उपभोक्ताओं ने रुफटॉप सोलर में रुचि दिखाई है। ‘क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी’ के विशेषज्ञ माइकेल लाईबीच बताते हैं कि 2026 तक सोलर पावर से दुनिया के सभी परमाणु रिएक्टरों से ज्यादा बिजली बनने लगेगी। यह 2027 तक विंड-टरबाइंस, 2028 तक पनबिजली, 2030 तक गैस से चलने वाले प्लांट और 2032 तक कोयला थर्मल पावर प्लांटों से अधिक बिजली बनाने लगेगा। लाईबीच बताते हैं कि 2004 में दुनिया को एक गीगावाट(एक अरब वाट) सोलर पावर क्षमता बनाने में एक वर्ष लगता था, 2010 में एक माह, 2016 में एक सप्ताह और 2023 में एक दिन लगा।
भारत में सोलर एनर्जी जैसी स्वच्छ ऊर्जा की उत्पादन क्षमता 2014 के बाद से 175% बढ़ गई है। रिन्यूएबल एनर्जी (नवीकरणीय ऊर्जा) का उत्पादन करीब 86% बढा है। बङे बैंक और वित्तीय संस्थानों ने साल 2030 तक अक्षय ऊर्जा से जुड़े प्रोजेक्ट्स में 32.45 लाख करोड़ रुपये निवेश की योजना बनाई है, फिर भी कम रुपांतरण दक्षता एवं हर समय उपलब्ध न होने के कारण नवीकरणीय स्रोतों से उर्जा उत्पादन, कोयला आधारित विद्युत को प्रतिस्थापित करने में समय ले रहा है।
जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने एवं नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान देने के कारण स्पष्ट हैं। धीरे-धीरे नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना और जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने को ऊर्जा परिवर्तन यानि ‘एनर्जी ट्रांजीशन’ के रूप में भी जाना जाता है। ‘सतत विकास लक्ष्यों’ को प्राप्त करने में उर्जा परिवर्तन की भूमिका महत्वपूर्ण है, परन्तु यह मुख्यतः आपूर्ती पक्ष का पहलू है। उपभोग पक्ष से ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा संरक्षण का साथ मिलना अति आवश्यक है। ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा संरक्षण, दोनों मिलकर एनर्जी इंटेंसिटी को कम करते हैं। अर्थात समान मात्रा में उत्पादन के लिए आप पहले से कम ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
राजस्थान सौर उर्जा के क्षेत्र में लगभग 22860 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ पहले नंबर पर है। राजस्थान का लगभग 2,08,110 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र रेगिस्तानी है। मध्यप्रदेश में सोलर प्लांट से चार हजार मेगावाट बिजली तैयार हो रहा है। प्रदेश सरकार ने आठ हजार मेगावाट सौर ऊर्जा की परियोजना मुरैना, शिवपुरी, सागर और धार जिले में प्रस्तावित की है। इसके लिए बंजर, बीहङ भूमि की तलाश की जा रही है। मुरैना में ‘पीपीपी मोड’ पर निजी निवेशकों के जरिये सोलर संयत्र लगाने के लिए निविदा जारी कर दी गई है। सौर ऊर्जा से ज्यादा बिजली बनने पर सरकार कम दरों पर उपभोक्ताओं को बिजली दे सकेगी। अभी नीमच में 2.14 रुपये, शाजापुर में 2.33, आगर में 2.44, रीवा 2.97 और ओंकारेश्वर में 3.20 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली उपलब्ध हो रही है। महंगी बिजली से 1.70 करोड़ उपभोक्ताओं में से 1.20 करोड़ घरेलू उपभोक्ता परेशान हैं। सितम्बर 2024 के आंकड़ों के अनुसार घरेलू उपभोक्ता के ऊपर 8633 करोड़ रुपये और कृषि उपभोक्ता के ऊपर 2982 करोड़ रुपये बकाया था, जो भुगतान करने की स्थिति में नहीं थे।
सौर-ऊर्जा प्लांट का कचरा नई चुनौती भी लाया है। सौर पैनलों का जीवन काल 20 से 25 वर्ष तक सीमित होता है। हालांकि ग्लास और एल्यूमीनियम, कुल वजन का 80 प्रतिशत होता है और इनसे खतरा नहीं होता, परन्तु पैनलों में अन्य जहरीली धातुएं और खनिज होते हैं जो ठीक से प्रबंधित न होने पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मिट्टी के भीतर सौर कचरे का अनुचित निपटान, पर्यावरणीय जोखिम पैदा कर सकता है। एक अध्ययन में कहा गया है कि 2023 तक 66.7 गीगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा प्लांट लग चुके हैं जिसमें 100 किलोटन कचरा पैदा हो रहा है। 2030 तक यह बढकर 340 किलोटन होने की संभावना है। इससे ओलंपिक आकार के 720 स्वीमिंग पूल भरे जा सकते हैं। अनुमान है कि 2030 तक सबसे ज्यादा राजस्थान में 13,487 टन, गुजरात में 11,528 टन और मध्यप्रदेश में 5150 टन सोलर कचरा सालाना पैदा होगा। भारत में सौर कचरे का ‘इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2022’ के अनुसार उचित तरीके से उपचार किया जाना चाहिए। केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सौर अपशिष्ट एकत्रण और भंडारण के लिए दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। इसके अलावा इस जमा कचरे के सुरक्षित और कुशल प्रसंस्करण को भी बढावा देना चाहिए। मंत्रालय को अपशिष्ट उत्पादन केन्द्रों की सटीक मैपिंग के लिए स्थापित सौर क्षमता का डेटाबेस बनाकर अपडेट करना चाहिए। अनुमान है कि सौर कचरे का 67 प्रतिशत राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में पैदा होगा।
---
*बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ
Comments
Post a Comment
NOTE: While there is no bar on viewpoint, comments containing hateful or abusive language will not be published and will be marked spam. -- Editor