प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 का आयोजन भव्यता, आस्था और प्रचार के नाम पर हुआ, लेकिन 29 जनवरी की रात मौनी अमावस्या पर जो हुआ, उसने इस आयोजन की व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), उत्तर प्रदेश द्वारा जारी एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भगदड़ में “सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक मौतें हुईं” और “पूरा मेला प्रबंधन कुप्रबंधन और वीआईपी संस्कृति का शिकार रहा।”
PUCL रिपोर्ट कहती है, “प्रशासन ने संगम क्षेत्र की खुली जगहों को भव्य टेंट और पंडालों से भर दिया, जिससे लोगों के आने-जाने का मार्ग संकरा हो गया। जबकि पूर्व में यही जगह भीड़ को नियंत्रित करने के लिए खुली रखी जाती थी।” रिपोर्ट के अनुसार, “हनुमान मंदिर और अक्षयवट-पातालपुरी के पास बने नए निर्माणों ने संगम नोज के इलाके को और संकुचित कर दिया था।”
संगठन ने आरोप लगाया है कि “मेले में बनाए गए 30 पीपा पुलों में से अधिकांश VIP उपयोग के लिए आरक्षित थे। 29 जनवरी को आम श्रद्धालुओं के लिए केवल 2 पुल ही चालू थे।” रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि “प्रशासन ने जानबूझकर भगदड़ के बाद झूंसी और संगम क्षेत्र में बिजली काट दी और फोन जाम कर दिए ताकि लोग फोटो या वीडियो न बना सकें। यह भगदड़ को छिपाने का प्रयास था।”
झूंसी की भगदड़ में बचकर निकली महिलाओं के हवाले से रिपोर्ट में दर्ज है कि “हम सबने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा था, लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा थी कि हाथ छूट गए। लोगों के कपड़े फट गए, बच्चे भीड़ में गिर पड़े, महिलाएं चिल्लाती रहीं। पुलिस ने लाठी चलाई और फिर खुद ही भाग गई।” एक महिला ने बताया, “हमने चप्पलों के ढेर और लाशें अपनी आंखों से देखीं।”
रिपोर्ट के अनुसार, “न्यूलॉन्ड्री की जांच में मोतीलाल नेहरू अस्पताल में 69 और स्वरूप रानी अस्पताल में 10 शव पाए गए। एक एंबुलेंस ड्राइवर ने बताया कि उसने 10 बार में करीब 100 शव ढोए। ये आंकड़े साफ दर्शाते हैं कि मरने वालों की संख्या 37 नहीं, कहीं अधिक है।” रिपोर्ट यह भी बताती है कि “मेले के खत्म होने के बाद 869 लोग लापता दर्ज किए गए, जिनका कोई सुराग नहीं मिला।”
PUCL ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है, “सरकार का पूरा फोकस रिकॉर्ड बनाने पर था – करोड़ों श्रद्धालुओं का आंकड़ा, सफाई कर्मियों का महाअभियान, VIP यात्राओं की संख्या, जबकि आम श्रद्धालु भगदड़ और अव्यवस्था के शिकार होते रहे।” रिपोर्ट के मुताबिक, “इस आयोजन में आम जनता की हैसियत दोयम दर्जे की बनाकर रख दी गई और कुंभ को वीआईपी शोपीस में तब्दील कर दिया गया।”
रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि “जब पत्रकार और पीड़ित परिजन मृतकों की सूची की मांग कर रहे थे, तो उन्हें धमकाया गया। कई पत्रकारों को पोस्टमॉर्टम हाउस में घुसने से रोका गया, और वहां भारी पुलिस तैनात की गई।” PUCL ने यह भी कहा है कि “मुख्यमंत्री द्वारा इस मुद्दे को ‘सनातन धर्म विरोध’ कहकर जन आलोचना को दबाने की कोशिश की गई।”
PUCL की मांग है कि “सरकार एक पारदर्शी दस्तावेज जारी करे जिसमें मृतकों, घायलों और लापता व्यक्तियों की पूरी जानकारी दी जाए। CCTV फुटेज और मेडिकल रिपोर्ट को सुरक्षित रखा जाए। जवाबदेही तय की जाए और पीड़ितों को मुआवजा व मानसिक परामर्श मिले।”
PUCL का निष्कर्ष है – “महाकुंभ 2025 की भगदड़ एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि सुनियोजित उपेक्षा और जन जीवन की अवहेलना का उदाहरण है। यह आवश्यक है कि भविष्य में ऐसे आयोजनों को सुरक्षित, समावेशी और जवाबदेह बनाया जाए।”
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