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देशव्यापी ग्रामीण भारत बंध में उतरे मध्य प्रदेश के आदिवासी, किया केंद्र सरकार का विरोध

- हरसिंग जमरे, भिखला सोलंकी, रतन अलावे* 

15 और 16 फरवरी को निमाड के बड़वानी, खरगोन और बुरहानपुर में जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में आदिवासी महिला-पुरुषों ग्रामीण भारत बंद में रैली एवं विरोध प्रदर्शन किया । प्रधान मंत्री द्वारा 2014 में फसलों की लागत का डेढ़ गुना भाव देने का वादा किया गया था, 2016 में किसानों की आय दुगना करने का वादा किया गया था । आज, फसलों का दाम नहीं बढ़ रहा है, लेकिन खेती में खर्च बढ़ता जा रहा है! खाद, बीज और दवाइयों का दाम, तीन-चार गुना बढ़ चुका है! किसानों को लागत का डेढ़ गुना भाव देने के बजाए, खेती को कंपनियों के हवाले करने के लिए 3 काले कृषि कानून लाए गए । 3 काले कानून वापस लेते समय प्रधान मंत्री ने फिर वादा किया था कि फसलों की लागत का डेढ़ गुना भाव की कानूनी गारंटी के लिए कानून बनाएँगे, लेकिन वो भी झूठ निकला! आज जब देश के किसान दिल्ली में आपको अपना वादा याद दिलाने आए है, तब आप उनका रास्ता रोक रहें है, उनके साथ मारपीट कर उन पर आँसू गैस फेंक रहें हैं, उन पर छर्रों से फायरिंग कर रहें है! देश को खिलाने वाला किसान खुद भूखा रहे, क्या यही विकास है?
गाँव में रोजगार न होने के कारण, भुखमरी से बचने हमारे गाँव खाली हो रहें है, युवा पीढ़ी अपने परिवार सहित गाँव से उजड रही हैं! अवैध ठेकेदार गाँव आकर 30-40 हज़ार में एक आदिवासी परिवार का सौदा कर उन्हें महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात ले जा रहे हैं । काम के लिए किसी भी परिवार को अपने गाँव से उजड़ कर बाहर न जाना पड़े, इसलिए हमने रोजगार गारंटी कानून के लिए संघर्ष किया । लेकिन आज सरकार रोजगार गारंटी कानून को चलने ही नहीं दे रही! महंगाई के हिसाब से, रोजगार गारंटी में कम से कम 200 दिन काम की गारंटी होनी चाहिए और कम से कम 800 रुपए मजदूरी मिलनी चाहिए! लेकिन आज रोजगार गारंटी को मजबूत करने के बदले, मोबाइल हाज़िरी और आधार भुगतान प्रणाली से उसे और भी कमजोर किया जा रहा है! रोजगार गारंटी में मोबाइल आधारित हाजरी के कारण, काम के बाद भी मजदूरों की हाज़िरी दर्ज नहीं हो रही! आधार भुगतान प्रणाली के कारण मजदूरों की पेमेंट रुकी हुई है! हमारे गाँव खाली हो जाए, और हम कंपनियों और बड़े सेठों के लिए सस्ते मजदूर बने, क्या यही हमारे लिए अमृत काल है?
शिक्षा हमारा मूलभूत और संवैधानिक अधिकार है – लेकिन आज किसान, मजदूर, आदिवासी, दलित और मेहनतकश समाज के लिए शिक्षा पाना असंभव होता जा रहा है! शिक्षा का अधिकार कानून का पालन करने के बजाए नई शिक्षा नीति 2020 के जरिए शिक्षा का निजीकरण किया जा रहा है! मध्य प्रदेश में शिक्षकों के लगभग एक लाख पद रिक्त हैं! केवल पहली से आठवीं कक्षा में 67 हज़ार 539 शिक्षकों के पद खाली हैं! सरकारी स्कूलों की हालत कितनी खराब है, यह इससे मालूम चलता है कि मध्य प्रदेश में 27 हज़ार से ज्यादा स्कूलों में बिजली नहीं है, 678 स्कूलों की तो बिल्डिंग ही नहीं! लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने विधान सभा में घोषणा कर दी है कि वो अब बस 9200 ‘सीएम राइज़’ स्कूलों पर ध्यान देगी, उसके अलावा कोई नए स्कूल खोलने, या चालू स्कूलों के सुधार के लिए सरकार की कोई योजना नहीं!
जल-जंगल-जमीन की लूट के खिलाफ लड़े बिरसा मुंडा, टंट्या मामा, भीमा नायक, वीरसिंग गोंड और रेंगा कोरकू जैसे क्रांतिकारियों के नाम पर सरकार बड़े-बड़े कार्यक्रम कर रही है! जिस लूट के खिलाफ हमारे पूर्वज लड़ते आए, उस ऐतिहासिक लूट अन्याय को खत्म करने के लिए वन अधिकार कानून बना था – लेकिन कानून लागू होने के 16 साल बाद भी लाखों आदिवासी परिवारों को वन अधिकार नहीं मिले हैं! सरकार ने हमारे जंगलों को बिना ग्राम सभा से अनुमति लिए, बिना वन अधिकार कानून की प्रक्रिया पूरी किए ही कंपनियों को बेचना और भी आसान करने के लिए वन संरक्षण कानून और उसके नियम में बदलाव दिए हैं! हसदेव आरण्य में बिना ग्राम सभा के अनुमति के अडानी के खदान के लिए 3000 एकड़ जंगल खत्म किया जा रहा है- मणिपुर में भी जल-जंगल-जमीन के नीचे दबे खनिज को हड़पने के लिए हमारी कुकी भाई-बहनों को बेदखल किया जा रहा है, उनके गावों को जलाया जा रहा है, उनपर अत्याचार हो रहा है!
फ़सलों की लागत पर डेढ़ गुना भाव का सरकारी रेट तय कर उसकी कानूनी गारंटी दी जाने, रोजगार गारंटी में कम से कम 200 दिन काम और 800 रुपए एक दिन की मजदूरी, और मजदूरों को 26000 रुपए महीने की न्यूनतम मजदूरी की मांग की गई। बिना वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन किए और बिना ग्राम सभा के अनुमति के जंगलों को कंपनियों को हवाले करने वाले वन संरक्षण कानून 2023 और उसके नियमों को खारिज करने की मांग करते हुए प्रधान मंत्री को ज्ञापन सौंपा गया।
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*जागृत आदिवासी दलित संगठन, मध्य प्रदेश

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