- राष्ट्रीय नदी घाटी मंच देश के अलग अलग भौगोलिक क्षेत्रों के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय: के राष्ट्रीय नदी घाटी मंच द्वारा आयोजित एक ऑनलाईन प्रेस वार्ता में केंद्र और राज्य सरकारों की विकास संबंधित नीतियों को नदियों के व्यापारीकरण, नीजिकरण, प्रदूषण और विनियोग के लिए ज़िम्मेदार ठहराया. साथ में इस बात को भी रेखांकित किया की चुनावी राजनीति में दूरदर्शिय लक्ष्य छोड़, लोक-लुभानि नीतियों का दबदबा रहता है और पर्यावरण के मुद्दे हाशिए पर रह जाते हैं। वक्ताओं ने इस बात की तरफ भी ध्यान दिलाया कि राज्य के साथ-साथ आम नागरिकों का भी दायित्व है कि प्राकृतिक संपदा –यानी जल-जंगल-जमीन के गठजोड़, जो हमारे पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित रख देश के प्रत्येक नागरिक के जीवन-जीविका की गारंटी सुनिश्चित करता है, को प्राथमिकता पर लाया जाय। ‘हिमालय की हिमनदियों से लेकर पेरियार तक हम एक ऐसा अभियान चला रहे हैं कि नदियों को एक सजीव इकाई के तौर पर मान्यता दी जाए, और साथ में यह मांग कर रहे हैं कि किसानों और खासकर छोटे धारकों, मछुआरों, खानाबदोशों, चरवाहों और बहुत सारे आदिवासी, दलित औ