सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

About Us

Counterview.in an open forum attached with the news blog Counterview. It allows broad sections to express their views freely in three languages -- English, Hindi and Gujarati. We welcome all -- civil rights activists, political workers, journalists, academics, students, government officials, past and present, professionals from different fields, artists and litterateurs, individuals in their own right, experts from diverse fields -- to share their point of view.
The aim is to stimulate a dialogue on issues ranging from political affairs and geopolitical concerns to environmental problems, leadership challenges, the role of the arts in society, caste and class issues, anything that seeks interaction on controversial issues.
We welcome diverse views to participate and share thoughts, experiences and stories on pressing and controversial issues in order to encourage dialogue and spread awareness on critical issues by providing a platform on which ideas, thoughts and questions can be expressed and tackled in an open environment.
This is especially important because, due to lack of a platform, viewpoints from diverse sources virtually lie idle in the labyrinths of the academic world, civil society, social media and experts.
***
Note: Whenever content is reproduced, in part or in full, whether owned or controlled by other organisations or institutions, sent to us for publication, we identify the source.
Those willing to get published any material, including statement, study, article, feature or paper, may email us to counterview.in@gmail.com
Please refer to our Submission Policy before sending anything.
This site is edited by Rajiv Shah, counterview.editor@gmail.com

टिप्पणियाँ

ट्रेंडिंग

લઘુમતી મંત્રાલયનું 2024-25નું બજેટ નિરાશાજનક: 19.3% લઘુમતીઓ માટે બજેટમાં માત્ર 0.0660%

- મુજાહિદ નફીસ*  વર્ષ 2024-25નું બજેટ ભારત સરકાર દ્વારા નાણામંત્રી નિર્મલા સીતારમને સંસદમાં રજૂ કર્યું હતું. આ વર્ષનું બજેટ 4820512.08 કરોડ રૂપિયા છે, જે ગયા વર્ષની સરખામણીમાં લગભગ 1% વધારે છે. જ્યારે લઘુમતી બાબતોના મંત્રાલયનું બજેટ માત્ર 3183.24 કરોડ રૂપિયા છે જે કુલ બજેટના અંદાજે 0.0660% છે. વર્ષ 2021-22માં લઘુમતી બાબતોના મંત્રાલયનું બજેટ રૂ. 4810.77 કરોડ હતું, જ્યારે 2022-23 માટે રૂ. 5020.50 કરોડની દરખાસ્ત કરવામાં આવી હતી. ગયા વર્ષે 2023-24માં તે રૂ. 3097.60 કરોડ હતો.

भाजपा झारखंड में मूल समस्याओं से ध्यान भटका के धार्मिक ध्रुवीकरण और नफ़रत फ़ैलाने में व्यस्त

- झारखंड जनाधिकार महासभा*  20 जुलाई को गृह मंत्री व भाजपा के प्रमुख नेता अमित शाह ने अपनी पार्टी के कार्यक्रम में आकर झारखंडी समाज में नफ़रत और साम्प्रदायिकता फ़ैलाने वाला भाषण दिया. उन्होंने कहा कि झारखंड में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठी आ रहे हैं, आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं, ज़मीन हथिया रहे हैं, लव जिहाद, लैंड जिहाद कर रहे हैं. असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिश्व सरमा जिन्हें आगामी झारखंड विधान सभा चुनाव के लिए जिम्मा दिया गया है, पिछले एक महीने से लगातार इन मुद्दों पर जहर और नफरत फैला रहे हैं। भाजपा के स्थानीय नेता भी इसी तरह के वक्तव्य रोज दे रह हैं। न ये बातें तथ्यों पर आधारित हैं और न ही झारखंड में अमन-चैन का वातावरण  बनाये  रखने के लिए सही हैं. दुख की बात है कि स्थानीय मीडिया बढ़ चढ़ कर इस मुहिम का हिस्सा बनी हुई है।

जितनी ज्यादा असुरक्षा, बाबाओं के प्रति उतनी ज्यादा श्रद्धा, और विवेक और तार्किकता से उतनी ही दूरी

- राम पुनियानी*  उत्तरप्रदेश के हाथरस जिले में भगदड़ में कम से कम 121 लोग मारे गए. इनमें से अधिकांश निर्धन दलित परिवारों की महिलाएं थीं. भगदड़ भोले बाबा उर्फ़ नारायण साकार हरी के सत्संग में मची. भोले बाबा पहले पुलिस में नौकरी करता था. बताया जाता है कि उस पर बलात्कार का आरोप भी था. करीब 28 साल पहले उसने पुलिस से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और बाबा बन गया. कुछ साल पहले उसने यह दावा किया कि वह कैंसर से मृत एक लड़की को फिर से जिंदा कर सकता है. जाहिर है कि ऐसा कुछ नहीं हो सका. बाद में बाबा के घर से लाश के सड़ने की बदबू आने पर पड़ोसियों ने पुलिस से शिकायत की. इस सबके बाद भी वह एक सफल बाबा बन गया, उसके अनुयायियों और आश्रमों की संख्या बढ़ने लगी और साथ ही उसकी संपत्ति भी.

सरकार का हमारे लोकतंत्र के सबसे स्थाई स्तंभ प्रशासनिक तंत्र की बची-खुची तटस्थता पर वार

- राहुल देव  सरकारी कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने पर ५८ साल से लगा हुआ प्रतिबंध इस सरकार ने हटा लिया है। यह केन्द्र सरकार के संपूर्ण संघीकरण पर लगी हुई औपचारिक रोक को भी हटा कर समूची सरकारी ढाँचे पर संघ के निर्बाध प्रभाव-दबाव-वर्चस्व के ऐसे द्वार खोल देगा जिनको दूर करने में किसी वैकल्पिक सरकार को दशकों लग जाएँगे।  मुझे क्या आपत्ति है इस फ़ैसले पर? संघ अगर केवल एक शुद्ध सांस्कृतिक संगठन होता जैसे रामकृष्ण मिशन है, चिन्मय मिशन है, भारतीय विद्या भवन है,  तमाम धार्मिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन हैं तो उसपर प्रतिबंध लगता ही नहीं। ये संगठन धर्म-कार्य करते हैं, समाज सेवा करते हैं, हमारे धर्मग्रंथों-दर्शनों-आध्यामिक विषयों पर अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें, टीकाएँ प्रकाशित करते हैं। इनके भी पूर्णकालिक स्वयंसेवक होते हैं।  इनमें से कोई भी राजनीति में प्रत्यक्ष-परोक्ष हस्तक्षेप नहीं करता, इस या उस राजनीतिक दल के समर्थन-विरोध में काम नहीं करता, बयान नहीं देता।  संघ सांस्कृतिक-सामाजिक कम और राजनीतिक संगठन ज़्यादा है। इसे छिपाना असंभव है। भाजपा उसका सार्वजनिक

આપણો દેશ 2014માં ફરીથી મનુવાદી પરિબળોની સામાજિક, રાજકીય ગુલામીમાં બંદી બની ચૂક્યો છે

- ઉત્તમ પરમાર  આપણો દેશ છઠ્ઠી ડિસેમ્બર 1992ને દિવસે મનુવાદી પરિબળો, હિન્દુમહાસભા, સંઘપરિવારને કારણે ગેર બંધારણીય, ગેરકાયદેસર અને અઘોષિત કટોકટીમાં પ્રવેશી ચૂક્યો છે અને આ કટોકટી આજ દિન સુધી ચાલુ છે. આપણો દેશ 2014માં ફરીથી મનુવાદી પરિબળો, હિન્દુ મહાસભા અને સંઘ પરિવારની સામાજિક અને રાજકીય ગુલામીમાં બંદીવાન બની ચૂક્યો છે.

निराशाजनक बजट: असमानता को दूर करने हेतु पुनर्वितरण को बढ़ाने के लिए कोई कदम नहीं

- राज शेखर*  रोज़ी रोटी अधिकार अभियान यह जानकर निराश है कि 2024-25 के बजट घोषणा में खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण क्षेत्र में खर्च बढ़ाने के बजाय, बजट या तो स्थिर रहा है या इसमें गिरावट आई है।

केंद्रीय बजट में कॉर्पोरेट हित के लिए, दलित/आदिवासी बजट का इस्तेमाल हुआ

- उमेश बाबू*  वर्ष 2024-25 का केंद्रीय बजट 48,20,512 करोड़ रुपये है, जिसमें से 1,65,493 करोड़ रुपये (3.43%) अनुसूचित जाति के लिए और 1,32,214 करोड़ रुपये (2.74%) अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित किए गए हैं, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की योजनाओं के अनुसार उन्हें क्रमशः 7,95,384 और 3,95,281 करोड़ रुपये देने आवंटित करना चाहिए था । केंद्रीय बजट ने जनसंख्या के अनुसार बजट आवंटित करने में बड़ी असफलता दिखाई दी है और इससे स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की समाजिक सुरक्षा एवं एवं विकास की चिंता नहीं है|