सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Will Gujarat Assembly librarian come under Modi scanner, thanks to this display?

By Rajiv Shah 
This was interesting: a Facebook friend put up a photo on the timeline, stating, "In the library of Gujarat Assembly, Gandhi, Savarkar, Marx and Modi stay together." I am not sure how would the powers that be reaction to this. But I can at least try to predict: the librarian who allowed this display in the library would sooner or later would get a flak, or worse, lose his or job -- such is the atmosphere we seem to live in.
I am not saying this because the books on Gandhi, Savarkar, Marx and Modi have been put side by side, but because one of the books on display is "Modi Demystified: The Making of a Prime Minister" (2014), authored by Ramesh Menon, whom I peripherally know as a veteran journalist. I have met him a couple of times, and have interacted with him on phone and social media apps. 
While I have not read the book, I know him as a Modi critic. This is what the introduction to the book on Amazon, which is selling it, says:
"Behind the ascent to prime minister, though, is a story of tough politics and hard strategy. In spite of his achievements, minorities are wary of his Hindu nationalist background, and bureaucrats and party colleagues are jittery about his reputation as an autocrat. Most of all, he has never fully been able to exorcize the ghosts of the riots that took place on his watch in Gujarat in 2002, leading to doubts among his critics about how India's social fabric will fare during his term."

टिप्पणियाँ

ट्रेंडिंग

हिंदी आलोचना जैसे पिछड़ चुके अनुशासन की जगह हिंदी वैचारिकी का विकास जरूरी

- प्रमोद रंजन*   भारतीय राजनीति में सांप्रदायिक व प्रतिक्रियावादी ताकतों को सत्ता तक पहुंचाने में हिंदी पट्टी का सबसे बड़ा योगदान है। इसका मुख्य कारण हिंदी-पट्टी में कार्यरत समाजवादी व जनपक्षधर हिरावल दस्ते का विचारहीन, अनैतिक और  प्रतिक्रियावादी होते जाना है। अगर हम उपरोक्त बातों को स्वीकार करते हैं, तो कुछ रोचक निष्कर्ष निकलते हैं। हिंदी-जनता और उसके हिरावल दस्ते को विचारहीन और प्रतिक्रियावादी बनने से रोकने की मुख्य ज़िम्मेदारी किसकी थी?

नफरती बातें: मुसलमानों में असुरक्षा का भाव बढ़ रहा है, वे अपने मोहल्लों में सिमट रहे हैं

- राम पुनियानी*  भारत पर पिछले 10 सालों से हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज कर रही है. भाजपा आरएसएस परिवार की सदस्य है और आरएसएस का लक्ष्य है हिन्दू राष्ट्र का निर्माण. आरएसएस से जुड़ी सैंकड़ों संस्थाएँ हैं. उसके लाखों, बल्कि शायद, करोड़ों स्वयंसेवक हैं. इसके अलावा कई हजार वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं जिन्हें प्रचारक कहा जाता है. भाजपा के सत्ता में आने के बाद से आरएसएस दुगनी गति से हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के अपने एजेण्डे को पूरा करने में जुट गया है. यदि भाजपा को चुनावों में लगातार सफलता हासिल हो रही है तो उसका कारण है देश में साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक मुद्दों का बढ़ता बोलबाला. इनमें से कुछ हैं राम मंदिर, गौमांस और गोवध एवं लव जिहाद. 

देशव्यापी ग्रामीण भारत बंध में उतरे मध्य प्रदेश के आदिवासी, किया केंद्र सरकार का विरोध

- हरसिंग जमरे, भिखला सोलंकी, रतन अलावे*  15 और 16 फरवरी को निमाड के बड़वानी, खरगोन और बुरहानपुर में जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में आदिवासी महिला-पुरुषों ग्रामीण भारत बंद में रैली एवं विरोध प्रदर्शन किया । प्रधान मंत्री द्वारा 2014 में फसलों की लागत का डेढ़ गुना भाव देने का वादा किया गया था, 2016 में किसानों की आय दुगना करने का वादा किया गया था । आज, फसलों का दाम नहीं बढ़ रहा है, लेकिन खेती में खर्च बढ़ता जा रहा है! खाद, बीज और दवाइयों का दाम, तीन-चार गुना बढ़ चुका है! किसानों को लागत का डेढ़ गुना भाव देने के बजाए, खेती को कंपनियों के हवाले करने के लिए 3 काले कृषि कानून लाए गए । 3 काले कानून वापस लेते समय प्रधान मंत्री ने फिर वादा किया था कि फसलों की लागत का डेढ़ गुना भाव की कानूनी गारंटी के लिए कानून बनाएँगे, लेकिन वो भी झूठ निकला! आज जब देश के किसान दिल्ली में आपको अपना वादा याद दिलाने आए है, तब आप उनका रास्ता रोक रहें है, उनके साथ मारपीट कर उन पर आँसू गैस फेंक रहें हैं, उन पर छर्रों से फायरिंग कर रहें है! देश को खिलाने वाला किसान खुद भूखा रहे, क्या यही विकास है?

હું બહુજન સમાજ પાર્ટીથી ચૂંટણી લડ્યો. મારા કડવા અનુભવ: સુરતનાં બનાવોના પરિપ્રેક્ષ્યમાં

- વાલજીભાઈ પટેલ  બહુજન સમાજ પાર્ટીના સુરતના બનાવ પછી પાર્ટીના લાગણીશીલ નિરાશ યુવા મિત્રોને માર્ગદર્શન મળે તે માટે મેં અનુભવેલો કડવો પ્રસંગ લખવો મને જરૂરી લાગે છે. એટલે લખી રહ્યો છું. આમ તો મને લખવાની આદત નથી. હું તો લડનાર માણસ છું.

How the slogan Jai Bhim gained momentum as movement of popularity and revolution

By Dr Kapilendra Das*  India is an incomprehensible plural country loaded with diversities of religions, castes, cultures, languages, dialects, tribes, societies, costumes, etc. The Indians have good manners/etiquette (decent social conduct, gesture, courtesy, politeness) that build healthy relationships and take them ahead to life. In many parts of India, in many situations, and on formal occasions, it is common for people of India to express and exchange respect, greetings, and salutation for which we people usually use words and phrases like- Namaskar, Namaste, Pranam, Ram Ram, Jai Ram ji, Jai Sriram, Good morning, shubha sakal, Radhe Radhe, Jai Bajarangabali, Jai Gopal, Jai Jai, Supravat, Good night, Shuvaratri, Jai Bhole, Salaam walekam, Walekam salaam, Radhaswami, Namo Buddhaya, Jai Bhim, Hello, and so on.

70 पर्यावरण, युवा, वन नागरिक समूहों की अपील: प्रकृति, लोकतंत्र व युवा भविष्य के लिए वोट करें

- जन आंदोलनों का राष्ट्रीय गठबंधन   देश भर से, 70 से अधिक पर्यावरण, युवा, वन और नागरिक समूहों ने 2024 चुनाव से पहले देश की जनता को अपील जारी करते हुए कहा कि, हम यह सुनिश्चित करें कि हमारे वोट से, प्रकृति की रक्षा, सभी नागरिकों के लिए संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार और भारत के युवाओं के लिए एक सुरक्षित भविष्य प्राप्त हो। अपीलकर्ता समूहों की सूची ऊपर एवं इस लिंक पर उपलब्ध हैं।

न नौकरियाँ, न पर्याप्त मजदूरी, न राहत: अनौपचारिक श्रमिकों के लिए मोदी की विरासत

- प्रतिनिधि द्वारा  भारत में वास्तविक मज़दूरी 2014-15 के बाद से नहीं बढ़ी है, जबकि देश की जीडीपी जरूर बेहतर हुई है। इस दौरान देश की सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था भी थम सी गई है। देश के अनौपचारिक श्रमिकों का जीवन बेहद अनिश्चित है, खासकर झारखंड जैसे राज्यों में जहां अनौपचारिक रोजगार लाखों लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत है।

કચ્છ અને અમદાવાદમાં થયેલ મોબ લીંચિંગ અને મોબ વાયોલન્સ ઘટના બાબતે DGP ને પત્ર

- મુજાહિદ નફીસ*  કચ્છ અને અમદાવાદમાં થયેલ મોબ લીંચિંગ અને મોબ વાયોલન્સ ઘટના બાબતે  DGP ને પત્ર લખી ને ગડશીશા કેસમાં IPC ની 307, 302 કલમોનો ઉમેરો કરવામાં આવે અને ગડશીશા પોલિસ ઇન્સ્પેક્ટર અને PSI શ્રીઓ ની ન્યાયહિતમાં તાત્કાલિક જિલ્લા બાહર બદલી કરવામાં આવે જેવી માંગણી કરવામાં આવી.

साहित्य साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का मैदान: शोषण के खिलाफ आत्मसम्मान से जीने की चाह

- सुधीर कुमार   साम्राज्यवाद आज अपने खुद के अंतर्विरोधों की वजह से भी और दुनिया के अनेक हिस्सों में हो रहे साम्राज्यवाद विरोधी संघर्षों की वजह से भी गहरे संकट में आ गया है। इन संकटों से उबरने के लिए साम्राज्यवाद युद्ध की शरण में जाता है। युद्ध से बड़े पैमाने पर मौतें, विस्थापन, भुखमरी आदि समस्याएं पैदा होती हैं। मौजूदा दौर में रूस और यूक्रेन तथा इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे युद्धों ने मानवता के सामने एक तरफ एक भीषण संकट खड़ा किया है लेकिन शोषण के खिलाफ और मनुष्य की आत्मसम्मान के साथ जीने की चाह रखने वाले लोगों को यह अवसर भी मुहैया कराया है कि ये साम्राज्यवाद और पूंजीवाद को जड़ से उखाड़ फेंक दें।    यह बातें प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव श्री विनीत तिवारी ने “साम्राज्यवाद और विस्थापन: साहित्य में उपस्थिति” विषय पर अपने सम्बोधन में कही। वे अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की भोपाल इकाई द्वारा आयोजित स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में व्याख्यान कार्यक्रम में बोल रहे थे। यह कार्यक्रम 14 अप्रैल 2024 को भोपाल स्थित मायाराम सुरजन भवन में कार्यक्रम आयोजित किया गया।

સ્ત્રીઓ અને રાજકારણ: ભાજપનો નિશાનો મંગળસૂત્ર થકી સ્ત્રીઓ સુધી પહોંચવાનો કેમ?

- મહાશ્વેતા જાની  નરેન્દ્ર મોદીનાં રાજસ્થાનમાં બાંસવાડામાં ચૂંટણી પ્રચાર દરમિયાન કરેલાં ભાષણ વિશે ખૂબ ચર્ચાઓ ચાલી રહી છે... એમની આ સ્ક્રીપ્ટ ભારોભાર કોમવાદને બળ આપનારી તો છે જ અને એક ચૂંટણી વિશ્લેષક તરીકે મને એની નવાઈ ન લાગી કારણકે આવા ઝેરી વક્તવ્યો તેમની છેલ્લા 25 વર્ષથી ફિતરત રહી છે.ગુજરાતના મુખ્યમંત્રી હતા ત્યારે તેમની સભાઓમાં ભયંકર કોમવાદી વલણ અત્યાર સુધી જોવા મળ્યું જ છે... પાંચ કા પચ્ચીસ.... કેમનું ભૂલી શકાય...! ગુજરાત ભાજપની લેબોરેટરી રહી છે અને એટલે જ એમને લાગે છે કે આ પ્રકારના વક્તવ્ય આખા દેશમાં પણ તેમને ખોબલે ખોબલે મત મેળવવા હજી કામ લાગશે.