देश भर से, 70 से अधिक पर्यावरण, युवा, वन और नागरिक समूहों ने 2024 चुनाव से पहले देश की जनता को अपील जारी करते हुए कहा कि, हम यह सुनिश्चित करें कि हमारे वोट से, प्रकृति की रक्षा, सभी नागरिकों के लिए संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार और भारत के युवाओं के लिए एक सुरक्षित भविष्य प्राप्त हो। अपीलकर्ता समूहों की सूची ऊपर एवं इस लिंक पर उपलब्ध हैं।
जैसा कि सभी देशवासी इस वर्ष लोकसभा चुनाव में मतदान करने की तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में हमारे युवाओं के भविष्य और आने वाले वर्षों में स्वच्छ वायु और जल सुरक्षा के उनके अधिकार के बारे में सोचना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारा देश ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, जल संकट, अल्प और अप्रत्याशित वर्षा, पिघलते ग्लेशियर और बढ़ते प्रदूषण के अत्यधिक प्रभावों का सामना कर रहा है। देश भर के विभिन्न पर्यावरण, क्लाइमेट एक्शन, युवा, वन और प्राकृति की रक्षा और जागरूकता में सक्रिय संगठन व समूह सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि, वोट डालने से पहले जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि या कमी जैसे अन्य महत्वपूर्ण कारकों के साथ-साथ, पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण और पारिस्थितिकी, अभिव्यक्ति की आजादी, देश का लोकतांत्रिक ढांचा, रोज़गार, नागरिकों के अधिकार आदि के संदर्भ में हमारे देश व सरकार का मूल्यांकन करें।
नवीनतम वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि और पर्यावरण डेटा के आधार पर, भारत 2022 के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बेहद कम स्कोर के साथ 180 देशों में सबसे निचले स्थान पर है। एक ओर, डेनमार्क, यूनाइटेड किंगडम, फ़िनलैंड जैसे उच्च प्रदर्शन करने वाले देश हैं जिन्होंने पर्यावरणीय स्वास्थ्य की रक्षा करने, जैव विविधता और आवास को संरक्षित करने, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने वाली नीतियों में लंबे समय से और निरंतर निवेश दिखाया है और उल्लेखनीय नेतृत्व और नीतियों का प्रदर्शन करते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को आर्थिक विकास से अलग करने का लगातार कार्य किये है| दूसरे छोर पर भारत इस सूची में सबसे निचले पायदान पर है, जहां हवा की गुणवत्ता में गिरावट, तेज़ी से बढ़ता ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूजल में कमी, सूखती और प्रदूषित नदियां और जल निकाय, हर जगह कचरे के पहाड़ हैं, एक बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं ऐसे समय में जब ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे संवेदनशील देशों में से एक भारत भी है।
भारत के पर्यावरण और प्राकृतिक प्रणालियों की रक्षा करने वाले कई महत्वपूर्ण कानून पिछले कुछ वर्षों में व्यापक जन विरोध के बावजूद भी, कमज़ोर किये गए हैं, जैसे कि वन संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण प्रभाव आकलन आदि| उत्तर में हिमालय और अरावली में हमारे जंगल, नदियाँ, पहाड़ और रेगिस्तान, मध्य और पूर्वी भारत में हसदेव वन और अन्य, निकोबार द्वीप समूह और पश्चिमी घाट में प्राचीन वर्षावनों का दोहन वृहद् आधारभूत संरचनाओं, बांध परियोजनाओं, कोयला खनन, पत्थर और रेत खनन और रियल एस्टेट के लिए किया जा रहा है। हमारा देश भारी जल संकट का सामना कर रहा है, हमारे 70% भूजल स्त्रोत सूख चुके हैं और पुनर्भरण की दर 10% से भी कम रह गई है। चेन्नई, बेंगलुरु जैसे शहर पानी की कमी को लेकर खबरों में रहे हैं। स्विस वायु गुणवत्ता निगरानी निकाय, IQAir द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 2023 में तीसरा सबसे प्रदूषित देश घोषित किया गया है, जो 2022 में 8वें स्थान से गिर गया है। दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 42 शहर अब भारत में हैं।
इन विषम परिस्थितियों में, विभिन्न राजनीतिक दलों व नेताओं से, हम मांग करते हैं:
i. हमारी प्राकृतिक और लोकतांत्रिक विरासत की सुरक्षा के लिए एक नई प्रतिबद्धता और संवाद
ii. भारत में 'विकास' की परिभाषा को बदलना। हमारे प्राकृतिक संसाधनों की कीमत पर विकास 'विकास' नहीं है, क्योंकि इससे हमारे प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले प्राकृतिक प्रणाली का विनाश होता है और जल सुरक्षा हमारे युवाओं और वन्यजीवों के भविष्य के लिए खतरा बन रही है।
iii. हिमालय, अरावली, पश्चिमी और पूर्वी घाटों, तटीय क्षेत्रों, आर्द्रभूमियों, नदी घाटियों, मध्य भारतीय और उत्तर-पूर्वी वन क्षेत्रों में पारिस्थितिक तंत्र और सामुदायिक आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करना और इन प्राकृतिक इलाकों में कॉर्पोरेट शोषण पर रोक।
iv. सभी स्थानीय और राष्ट्रीय विकास संबंधी निर्णय प्रक्रिया में समुदाय और नागरिक समाज को केंद्रीय रूप में शामिल करना। प्रकृति के अधिकारों और उस पर निर्भर समुदाय के अधिकारों तथा हमारी भावी पीढ़ियों के अधिकारों को सभी विकास योजनाओं के मूल सिद्धांत के रूप में बनाए रखना। ग्राम सभा की सहमति के बिना वन भूमि व खेती की भूमि का कोई भी व्यपवर्तन नहीं होना चाहिए।
v. पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण के लिए हमारी मांग है कि:
1. 2014 के बाद से पर्यावरण और वन अधिनियमों जैसे वन संरक्षण संशोधन, पर्यावरण संघात निर्धारण और अन्य में सभी जोरज़ोर प्रावधानों बदला जाना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, जैव विविधता अधिनियम, वन अधिकार कानून, पेसा कानून और प्रकृति और आदिवासी, मूलवासी समुदायों के अधिकारों को बनाए रखने वाले सभी कानूनों का पूर्ण और प्रभावी कार्यान्वयन।
2. सभी आर्द्रभूमियों को आर्द्रभूमि (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम, 2010 के तहत अधिसूचित किया जाना चाहिए।
3. भारत भर में सूख चुकी सभी नदियों, जोहड़ों, झीलों, तालाबों और अन्य जल निकायों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए और हमारे देश की जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके जल पुनर्भरण युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए।
4. हिमालय, अरावली और पश्चिमी घाटों में नदियों को जोड़ने और बांध बनाने, विस्फोट करने, सुरंग बनाने और हमारे पहाड़ों को काटने वाली सभी परियोजनाओं पर रोक और उनहे समग्र प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन और सार्वजनिक जनमत संग्रह से गुजरना होगा।
5. पूरे भारत में शहरीकरण, बुनियादी संरचना परियोजनाओं और व्यवसायीकरण के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन के लिए इलाके विशिष्ट आपदा और क्लाइमेट रिस्क अध्ययन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
6. हमारी पहाड़ियों में खनन को रोकने के लिए निर्माण गतिविधियों में टिकाऊ और वैकल्पिक निर्माण सामग्री का उपयोग करने की नीति का तत्काल कार्यान्वयन।
7. जंगल और निवास क्षेत्रों के करीब सभी खनन गतिविधियों को रोका जाना चाहिए ताकि हमारे वन्यजीव और ग्रामीण समुदाय विस्फोट और खनन के प्रतिकूल स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रभावों के बिना शांति से रह सकें और हमारे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को हमारी भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सके।
8. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (पृथक्करण, पुनर्चक्रण, पुन: उपयोग और कटौती सहित) नियमों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सीवेज और अपशिष्ट जल के सुरक्षित उपचार, पुनर्चक्रण और निर्वहन के लिए एसटीपी और ईटीपी स्थापित किए जाने चाहिए।
हम सभी भारतीयों से यह ध्यान रखने का आग्रह करते हैं कि वास्तव में सुशासन, नीति निर्माण में जनता की भागीदारी को सक्षम बनाता है और भ्रष्टाचार और नियमों की अनदेखी को कम करता है, स्वतंत्र प्रेस द्वारा सार्वजनिक बहस का समर्थन करता है और जन प्रतिनिधियों को पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों को प्रोत्साहित करता है। इन सबसे ही अपना देश एक बेहतर कल और सतत, न्यायपूर्ण विकास की ओर बढ़ सकता है|
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