भारत में परजीवियों का एक विशाल समूह है जो बोलता है कि “सब कुछ माया है”, लेकिन व्यवहार में यह समूह सारी जिंदगी इसी “माया” के पीछे पागल रहता है। प्राचीन भारत के लोकायत संप्रदाय ने इन परजीवियों की खूब खबर ली थी।
1. यह जगत ही एकमात्र जगत है, यह जीवन ही एकमात्र जीवन है, और हमें इसे सर्वश्रेष्ठ तरीके से जीने का प्रयत्न करना चाहिए।
2. जब तक जियो सुख से जियो। मृत्यु की निगाहों से कोई नहीं बच सकता। एक बार जब शरीर जलकर राख हो जाएगा, फिर पुनर्जन्म कैसे होगा?
3. सुख के साथ दुख भी मिश्रित है, इसलिए हमें सुख को त्याग देना चाहिए, ऐसा मूर्खों का विचार है। अपना भला चाहने वाला कौन इंसान धूल और भूसी के कारण उत्कृष्ट सफेद अनाज वाले धान को फेंक देगा?
4. ना कोई स्वर्ग है, ना कोई मोक्ष, ना आत्मा किसी परलोक में जाती है।
5. वर्णाश्रम धर्म के पालन से भी कोई फल प्राप्त नहीं होता।
6. मोर को रंग किसने दिए हैं या कोयल से गीत कौन गवाता है, इसका प्रकृति के सिवा और कोई कारण नहीं है।
7. अग्निहोत्री यज्ञ, तीनों वेद, त्रिदंड धारण और शरीर में भस्म लगाना, ये सभी बुद्धि और पौरुषहीन लोगों की आजीविका के साधन मात्र हैं।
8. अगर श्राद्ध में अर्पित भोजन से स्वर्ग में बैठे लोग संतुष्ट हो जाते हैं तो क्यों नहीं छत पर बैठे लोगों को नीचे ही भोजन दे दिया जाता?
9. अगर श्राद्ध करने से मरे हुए लोगों को तृप्ति हो जाती है, तो फिर किसी राहगीर को साथ में भोजन देने की क्या जरूरत है? घर में दिए भोजन से ही उसे रास्ते में तृप्ति मिल जाएगी।
10. अगर कोई अपने शरीर को छोड़कर परलोक चला जाता है तो अपने दोस्तों और अन्य लोगों के प्रेम में बंधकर वह दुबारा वापस क्यों नहीं लौट आता?
11. इसीलिए, ब्राह्मणों ने मात्र अपनी आजीविका के लिए श्राद्ध कर्म की व्यवस्था की है। इसमें अधिक कुछ भी नहीं है।
---
स्रोत: फेसबुक
टिप्पणियाँ