- अरुण खोटे, संजीव कुमार*
गत एक सप्ताह में, उत्तर प्रदेश में सीवर/सेप्टि क टैंक सफाई कर्मियों की सफाई के दौरान सेप्टिक टैंक में मौत। 2 मई, 2024 को, लखनऊ के वज़ीरगजं क्षेत्र में एक सेवर लाइन की सफाई करते समय शोब्रान यादव, 56, और उनके पत्रु सशुील यादव, 28, घटुन से हुई मौत। एक और घटना 3 मई 2024 को नोएडा, सेक्टर 26 में एक घर में सेप्टि क टैंक को सफाई करते समय दो सफाई कर्मचर्मारी नूनी मडंल, 36 और कोकन मडंल जिसे तपन मडंल के नाम से जानते हैं, की मौत हो गई। ये सफाई कर्मचर्मारी बंगाल के मालदा जिले के निवासी थे और नोएडा सेक्टर 9 में रहते थे। कोकन मडंल अपनी पत्नी अनीता मडंल के साथ रहते थे। इनके तीन स्कूल जाने वाले बच्चे हैं जो बंगाल में रहते हैं। नूनी मडंल अपनी पत्नी लिलिका मडंल और अपने पत्रु सजुान के साथ किराए पर झग्गी में रहते थे। वे दैनिक मजदरूी और सफाई कर्मचर्मारी के रूप में काम करते थे।
3 मई को, शाम 7 बजे दोनों कर्मचारियों को नोएडा सेक्टर 26 में एक निजी आवास में सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए बुलाया गया था। सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय दोनों कर्मचारी विषैली (toxic) गैस के कारण मर गए। पीड़ितों के परिवार द्वारा सूचित किया गया है कि स्थान पर सफाई प्रक्रिया का कोई निगरानी करने वाला नहीं था। यह भी ध्यान देने योग्य है कि जब कर्मचारी नाशक गैस के कारण मर गए, तो लंबे समय तक मालिक के परिवार में से किसी ने जांच नहीं की और न ही स्थिति के बारे में जागरूक थे। उन्हें लगभग 11 बजे पुलिस ने सेप्टिक टैंक से निकाला गया और नोएडा के सेक्टर 27 में कैलाश अस्पताल ले गए, जहां उन्हें पहुँचते ही मृत घोषित किया गया। अस्पताल ने एक मेडिको-लीगल केस (MLC) जारी की और पीड़ितों के शव को उसी दिन पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पोस्टमार्टम 4 मई को हुआ लेकिन पुलिस ने इसके बाद कोई कार्रवाई नहीं की।
अभी तक पीड़ितों के परिवार को पुलिस से पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली है और ना ही पुलिस द्वारा FIR दर्ज किया गया है। नोएडा के सेक्टर 20 के पुलिस कमिशनरेट ने FIR दर्ज करने में अनिच्छा जताई और दावा किया कि स्वच्छता कर्मचारियों की मौत एक ‘अनपेक्षित परिणाम’ थी। FIR दर्ज न करने के लिए पीड़ितों के परिवार पर निरंकुश दबाव बनाया जा रहा है और इसका कोई सबूत भी नहीं है कि पीड़ितों के परिवार को अधिकारित मुआवज़ा का पैसा प्राप्त हुआ है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग 2013 के प्रावधान के तहत एक अवैध अभ्यास है जो निर्धारित करता है जो किसी व्यक्ति को किसी भी तरीके से मानव मल को हाथ से साफ करने, ले जाने या संभालने की अनुमति नहीं देता। कोकन मंडल और नूनी मंडल मैन्युअल स्कैवेंजिंग के पीड़ित थे और उन्हें किसी भी सुरक्षा उपकरण के बिना निजी घर के सेप्टिक टैंक को हाथ से साफ करने के लिए बुलाया गया था। 2013 के एमएस अधिनियम के तहत FIR दर्ज होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, पीड़ितों के परिवारों को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार योग्य मुआवजा दिया जाना चाहिए। यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह सफाई कर्मचारियों की विधवाओं को मुआवजे की सुनिश्चिति करें और उन्हें सुरक्षा भी दें।
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम) और जस्टिस न्यूज़ संयुक्त बयान जारी कर रहे हैं कि पुलिस द्वारा अनक्रियता अत्यंत अन्यायपूर्ण है। पुलिस परिवार को योग्य मुआवजा देने और उनके उचित पुनर्वास की सुनिश्चिति करने में विफल रही है। यह दुखद है कि 2013 के प्रोहिबिशन ऑफ इंप्लॉयमेंट एस मैन्युअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रेहब्लितेशन एक्ट, 2013 के 10 वर्षों के बाद भी मैन्युअल स्कैवेंजिंग अब भी मौजूद है और पीड़ितों की न्याय सुनिश्चिति के लिए कोई उचित उपाय नहीं है। हम उत्तर प्रदेश में सेप्टिक टैंक में हो रही मौत के बढ़ते हुए आंकड़ों का विरोध करते हैं। हम यह मांग करते हैं कि जल्द से जल्द इन मैन्युअल स्कैवेंजरों की मौत पर कार्रवाई हो ताकि भविष्य में यह हादसा फिर से न दोहराया जाए।
गत एक सप्ताह में, उत्तर प्रदेश में सीवर/सेप्टि क टैंक सफाई कर्मियों की सफाई के दौरान सेप्टिक टैंक में मौत। 2 मई, 2024 को, लखनऊ के वज़ीरगजं क्षेत्र में एक सेवर लाइन की सफाई करते समय शोब्रान यादव, 56, और उनके पत्रु सशुील यादव, 28, घटुन से हुई मौत। एक और घटना 3 मई 2024 को नोएडा, सेक्टर 26 में एक घर में सेप्टि क टैंक को सफाई करते समय दो सफाई कर्मचर्मारी नूनी मडंल, 36 और कोकन मडंल जिसे तपन मडंल के नाम से जानते हैं, की मौत हो गई। ये सफाई कर्मचर्मारी बंगाल के मालदा जिले के निवासी थे और नोएडा सेक्टर 9 में रहते थे। कोकन मडंल अपनी पत्नी अनीता मडंल के साथ रहते थे। इनके तीन स्कूल जाने वाले बच्चे हैं जो बंगाल में रहते हैं। नूनी मडंल अपनी पत्नी लिलिका मडंल और अपने पत्रु सजुान के साथ किराए पर झग्गी में रहते थे। वे दैनिक मजदरूी और सफाई कर्मचर्मारी के रूप में काम करते थे।
3 मई को, शाम 7 बजे दोनों कर्मचारियों को नोएडा सेक्टर 26 में एक निजी आवास में सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए बुलाया गया था। सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय दोनों कर्मचारी विषैली (toxic) गैस के कारण मर गए। पीड़ितों के परिवार द्वारा सूचित किया गया है कि स्थान पर सफाई प्रक्रिया का कोई निगरानी करने वाला नहीं था। यह भी ध्यान देने योग्य है कि जब कर्मचारी नाशक गैस के कारण मर गए, तो लंबे समय तक मालिक के परिवार में से किसी ने जांच नहीं की और न ही स्थिति के बारे में जागरूक थे। उन्हें लगभग 11 बजे पुलिस ने सेप्टिक टैंक से निकाला गया और नोएडा के सेक्टर 27 में कैलाश अस्पताल ले गए, जहां उन्हें पहुँचते ही मृत घोषित किया गया। अस्पताल ने एक मेडिको-लीगल केस (MLC) जारी की और पीड़ितों के शव को उसी दिन पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पोस्टमार्टम 4 मई को हुआ लेकिन पुलिस ने इसके बाद कोई कार्रवाई नहीं की।
अभी तक पीड़ितों के परिवार को पुलिस से पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली है और ना ही पुलिस द्वारा FIR दर्ज किया गया है। नोएडा के सेक्टर 20 के पुलिस कमिशनरेट ने FIR दर्ज करने में अनिच्छा जताई और दावा किया कि स्वच्छता कर्मचारियों की मौत एक ‘अनपेक्षित परिणाम’ थी। FIR दर्ज न करने के लिए पीड़ितों के परिवार पर निरंकुश दबाव बनाया जा रहा है और इसका कोई सबूत भी नहीं है कि पीड़ितों के परिवार को अधिकारित मुआवज़ा का पैसा प्राप्त हुआ है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग 2013 के प्रावधान के तहत एक अवैध अभ्यास है जो निर्धारित करता है जो किसी व्यक्ति को किसी भी तरीके से मानव मल को हाथ से साफ करने, ले जाने या संभालने की अनुमति नहीं देता। कोकन मंडल और नूनी मंडल मैन्युअल स्कैवेंजिंग के पीड़ित थे और उन्हें किसी भी सुरक्षा उपकरण के बिना निजी घर के सेप्टिक टैंक को हाथ से साफ करने के लिए बुलाया गया था। 2013 के एमएस अधिनियम के तहत FIR दर्ज होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, पीड़ितों के परिवारों को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार योग्य मुआवजा दिया जाना चाहिए। यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह सफाई कर्मचारियों की विधवाओं को मुआवजे की सुनिश्चिति करें और उन्हें सुरक्षा भी दें।
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम) और जस्टिस न्यूज़ संयुक्त बयान जारी कर रहे हैं कि पुलिस द्वारा अनक्रियता अत्यंत अन्यायपूर्ण है। पुलिस परिवार को योग्य मुआवजा देने और उनके उचित पुनर्वास की सुनिश्चिति करने में विफल रही है। यह दुखद है कि 2013 के प्रोहिबिशन ऑफ इंप्लॉयमेंट एस मैन्युअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रेहब्लितेशन एक्ट, 2013 के 10 वर्षों के बाद भी मैन्युअल स्कैवेंजिंग अब भी मौजूद है और पीड़ितों की न्याय सुनिश्चिति के लिए कोई उचित उपाय नहीं है। हम उत्तर प्रदेश में सेप्टिक टैंक में हो रही मौत के बढ़ते हुए आंकड़ों का विरोध करते हैं। हम यह मांग करते हैं कि जल्द से जल्द इन मैन्युअल स्कैवेंजरों की मौत पर कार्रवाई हो ताकि भविष्य में यह हादसा फिर से न दोहराया जाए।
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*जस्टिस न्यूज़, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम)
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