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सफाई कर्मियों का निवाला दाव पर! अब मुद्दा आधारित एकता ही एकमात्र रास्ता!

- संजीव डांडा* 

 दिल्ली में सफाई कर्मी रोजगार के आभाव में अब भुखमरी का का सामना कर रहे हैं । सरकार उनकी समस्या का समाधान करने में असमर्थ है । आज कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में आयोजित मीटिंग में दिल्ली के सीवर कर्मचारियों और कचरा बीनने वालों ने अपने रोजगार के कई मुद्दे उठाए । बैठक का आयोजन सफाई कर्मचारियों, यूनियन के प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की सिफारिशों को सार्वजनिक करने के लिए किया गया था । इस बैठक में 200 से अधिक सीवर श्रमिकों और कचरा बीनने वालों ने भाग लिया और उनके सामने आने वाली आजीविका के संकट पर चर्चा की।
यदि सीवर सफ़ाई कर्मचारी और कचरा बीनने वाले मजदुर नियमित रूप से काम नहीं करेगें तो राष्ट्रीय राजधानी ठप हो जाएगी, बावजूद इसके सरकारी महकमें में उन्हें एकीकृत करने का कोई प्रावधान नहीं है । पिछले पांच महीनों में, सैकड़ों ठेकारत सीवर कर्मचारियों को उनके ठेकेदारों ने अचानक नौकरी से हटा दिया, जिससे उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो गया । दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) द्वारा सीवर कार्य के निजीकरण का हवाला देते हुए मुनिसिपाल वर्कर्स लाल झंडा यूनियन (सीटू) के अध्यक्ष, वीरेंद्र गौड़ ने कहा कि अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) कानून में कहा गया है कि स्थायी प्रकृति के कामों का निजीकरण नहीं किया जा सकता । बावजूद इसके, अधिकांश सीवर कार्य संविदा कर्मचारियों द्वारा किया जाता है, जिन्हें न्यूनतम मजदूरी या उचित नौकरी की सुरक्षा भी नहीं मिलती है।मुनिसिपाल वर्कर्स लाल झंडा यूनियन के उपाध्यक्ष धर्मेंद्र भाटी ने सीवर कर्मचारियों की बहाली के लिए हर संभव प्रयास करने की बात कही।
ठेकेदारी प्रथा को “कभी न खत्म होने वाली गुलामी की व्यवस्था” कहते हुए एडवोकेट कवलप्रीत कौर ने कहा कि ठेकेदारी प्रथा के तहत मौजूद भ्रष्टाचार को जारी नहीं रहने दिया जा सकता । उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में ठेकारत सीवर कर्मचारियों द्वारा दायर याचिका पर हो रहे कार्यवाही के विषय में भी प्रकाश डाला, जहां न्यायालय ने एक आदेश पारित किया है कि जब तक पुराने कर्मचारियों को बहाल नहीं किया जाता तब तक कोई नई भर्ती नहीं की जाएगी ।
आजीविका के नुकसान के अलावा, सफाई कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा, उचित स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता से संबंधित सुविधाओं के न होने से भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है । श्रम अधिकार कार्यकर्ता शलाका चौहान ने कहा कि कचरा बीनने वाले अपने निवास स्थान का लगभग 70% हिस्सा कचरे को अलग करने और भंडारण के लिए करते हैं और केवल 30% हिस्से में वे रहते हैं । कचरा प्रबंधन प्रणाली में उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद अनौपचारिक रूप से कचरा बीनने वाले कर्मचारियों को कचरे छांटने के लिए कोई स्थान आवंटित नहीं किया जाता है और उन्हें कचरे को अपने घरेलू स्थानों में संग्रहित करना पड़ता है । इससे न केवल उनके परिवारों को स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी जोखिम का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें अपमान भरा जीवन जीने के लिए भी मजबूर होना पड़ता है ।
कचरा बीनने वाले परिवारों के सामाजिक बहिष्कार के बारे में बोलते हुए, सामाजिक कार्यकर्ता  कमला उपाध्याय ने कहा कि एक दशक से अधिक समय तक कचरा बीनने वाले बच्चों के साथ काम करने के अपने अनुभव में उन्होंने देखा है कि स्कूल अक्सर ऐसे बच्चों को प्रवेश देने से इनकार कर देते हैं या उनकी शिक्षा बंद करने के लिए प्रयास करते हैं । ये बच्चे, जो कचरे को अलग करने में अपने परिवारों की मदद करते हैं, वे पुलिस अधिकारियों की हिंसा और उत्पीड़न का भी सामना करते हैं । उन्होंने यह भी कहा कि काम के दौरान लैंडफिल में किसी दुर्घटना में बच्चे की मौत के मामलों में भी पुलिस अधिकारी जांच करने या आधिकारिक रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार करते हैं ।
नेशनल अलायंस फॉर लेबर राइट्स (एनएएलआर) से राजेश उपाध्याय ने सफाई कर्मचारियों की तेजी से बिगड़ती आजीविका की ओर इशारा करते हुए कहा, कचरा बीनने वालों के पास उनकी पिछली आय का एक तिहाई हिस्सा बचा है । अखिल भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला ने कहा कि भारत में केवल 30% श्रमिक संगठित हैं और बाकी 70% असंगठित हैं जिससे उनके लिए अपनी मांगों को जनता तक पहुंचाना मुश्किल हो जाता है । आगे उन्होंने कहा कि श्रमिकों को संगठित करने के लिए 'मुद्दा आधारित एकता' जरूरी है ताकि अधिकारियों द्वारा उनकी आवाज सुनी जा सके ।
सफाई कर्मचारियों के साथ इस संवाद का आयोजन दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (DASAM) द्वारा दिल्ली जल बोर्ड सीवर डिपार्टमेंट मजदूर संगठन, मुनिसिपाल वर्कर्स लाल झंडा यूनियन (सीटू), जल माल कामगार संघर्ष मोर्चा, दिल्ली जल बोर्ड कर्मचारी यूनियन, नेशनल कैंपेन फॉर डिग्निटी एंड राइट्स ऑफ सीवरेज एंड अलाइड वर्कर्स (NCDRSAW), सीवरेज एंड अलाइड वर्कर्स फोरम (SSKM), जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM), मगध फाउंडेशन, अंबेडकरवादी लेखक संघ (एएलएस), दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप (DSG), पीपुल्स रिसोर्स सेंटर (PRC-India), इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड सस्टेनेबिलिटी (IDS), वेस्टपिकर्स वेलफेयर फाउंडेशन (WWF), ऑल इंडिया कबाड़ी मजदूर महासंघ (AIKMM), बस्ती सुरक्षा मंच (BSM), शहरी महिला कामगार यूनियन (SMKU), नेशनल अलायंस फॉर लेबर राइट्स (NALR), गिग् वर्कर एसोसिएशन, जस्टिस न्यूज और विमर्श मीडिया जैसे यूनियनों और संगठनों के सहयोग से किया गया था।  
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*कनविनर, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय; सचिव, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच

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