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दाँव उल्टा पड़ा: राहुल गांधी के रूप में हम एक साधारण इंसान को नायक होते देख रहे हैं

- अमिता नीरव 
संघ औऱ बीजेपी ने राहुल गाँधी पर जो सोचकर ‘इन्वेस्ट’ किया था, उसके परिणाम गंभीर रूप से नुकसानदेह आ रहे हैं। ये थोड़ी अटपटी बात लग सकती है, लेकिन सोचिएगा कि संघ और बीजेपी ने राहुल गाँधी को जितना गंभीरता से लिया, उनकी संभावनाओं को लेकर वे जितना श्योर थे, उतना तो खुद राहुल और कांग्रेस भी नहीं थी।
इसीलिए राहुल को ‘पप्पू’ सिद्ध करने के लिए मेनस्ट्रीम मीडिया औऱ सोशल मीडिया सबको लगा दिया था। करोड़ों रुपए लगाकर उन्होंने राहुल को पप्पू सिद्ध किया, क्योंकि शायद वे जानते होंगे कि यदि इसकी छवि को नुकसान नहीं पहुँचाया गया तो भविष्य में ये हमारे लिए नुकसानदेह हो जाएगा।
मगर वो भी कहाँ जानते होंगे कि एक वक्त ऐसा आएगा कि तुम्हारा दाँव तुम्हें ही उल्टा पड़ जाएगा। गाँधी परिवार का एक अनिच्छुक और लापरवाह युवा एकाएक भारतीय राजनीति में चमकीली उम्मीद की तरह उभरकर आएगा और देखते-देखते मजबूत सत्ता के पैरों के नीचे से जमीन खींच लेगा।
मैं अक्सर सोचती थी कि हर युद्ध में लड़ाई के हथियार हमेशा ताकतवर तय करता है। जब कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ रही थी, तब तो मेरी इस हायपोथीसिस की तस्दीक ही हो गई थी। एक तरफ सत्ता का आक्रामक हिंदुत्व था उसके सामने कांग्रेस का हिंदुत्व... क्या परिणाम होगा?
वही, जो हुआ। कांग्रेस लगातार-लगातार हारने लगी। कांग्रेसी अलग-अलग वजहों से पार्टी छोड़-छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। यहाँ तक कि अब बीजेपी कांग्रेस हो गई है। उस पर कांग्रेस का नेतृत्व एक ऐसे नौसिखिया युवा के हाथ में है, जिसे सार्वजनिक जीवन में पप्पू सिद्ध किया जा चुका है।
लगने लगा था कि अब कांग्रेस में राहुल, प्रियंका औऱ सोनिया के अलावा और कोई बचेगा ही नहीं। देश को राजा बाबू कांग्रेस मुक्त करके ही मानेंगे। तभी ये हो गया कि इस ताकतवर सरकार का सबसे ताकतवर इंसान राहुल गाँधी की वजह से भ्रम की स्थिति में आ पहुँचा है।
वह समझ ही नहीं पा रहा है कि किस करवट जाए कि उसे आराम मिले। अब तक का टेस्टेड कार्ड हिंदुत्व अब उसे बहुत निश्चिंत नहीं कर रहा है। राहुल की बिछाई पिच तो और भी ज्यादा असुविधाजनक है। मगर सत्ता में बने रहना है तो उस पिच पर उतरना ही होगा। 
अब तक जिनकी छवि ग्रेट ओरेटर की रही, वो अचानक लड़खड़ाने लगे। उनके पास न मुद्दे बचे, न काम, न योजना... इन शॉर्ट बताने के लिए कुछ बचा ही नहीं। इतना सब एकाएक कैसे हो गया? ये जो राहुल नाम का शख्स है, ये अब तक कहाँ था? जाहिर है, अपने पप्पू होने से लड़ रहा था। 
कुछ साल पहले कहीं अपने भाषण में राहुल ने बहुत सहज रूप से कहा था कि मोदी जी मेरी हँसी उड़ाते हैं, मुझे बुरा नहीं लगता है। मैं इससे सीखता हूँ। अब सोचती हूँ तो लगता है कि वो झूठ नहीं बोल रहा था। वो सच कह रहा था, उसने सचमुच सीखा है। 
जब राहुल राजनीति में आया, तब वो गाँधी परिवार की वंश परंपरा का उत्तराधिकारी होने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था। परदादा, दादी, पिता औऱ फिर माँ के राजनीति में होने के चलते राजनीति में राहुल का होना उसकी स्वाभाविक परिणिति थी। 
अमेठी जैसी परंपरागत सीट से सांसद होने में भी राहुल की कोई उपलब्धि नहीं थी। तो आखिर राहुल गाँधी था क्या? क्यों संघ और बीजेपी ने इतने संसाधन, लोग, पैसा लगाया राहुल को पप्पू सिद्ध करने में! आज समझ आता है क्यों? क्योंकि वे राहुल गाँधी के ‘होने’ की संभावना से डरे हुए थे।
उनका डर सही सिद्ध हुआ, मगर इतने दुष्प्रचार, बदनामी, तरह-तरह के आरोप, इतनी सारी बाधाओं के बावजूद राहुल अपने रास्ते चलता रहा, बल्कि अपने रास्ते के पत्थर, काँटे हटाता रहा। यहाँ संघ और बीजेपी की रणनीति उलट गई। 
सोचती हूँ यदि राहुल की राह में इतने काँटे नहीं बिछाए गए होते, यदि उसे अमेठी का अदना सा सांसद ही रहने दिया होता। वह संसद आता, कभी नहीं आता। कुछ मुद्दों पर बोलता, कुछ पर नहीं बोलता। अक्सर महत्वपूर्ण मौकों पर अनुपस्थित हो जाता, अक्सर मुश्किल घड़ियों में रणछोड़ हो जाता, तो किसी को कोई नुकसान नहीं होता।
हरेक को खत्म करने की आक्रामकता ने राहुल गाँधी को ‘द राहुल गाँधी’ बना दिया। लगातार मिलने वाली हार में भी जिसका मनोबल नहीं टूटा। लगातार ट्रोल करने, चरित्र हनन करने और तरह-तरह के व्यवधान खड़े करने के बावजूद वह बना रहा, बल्कि मजबूत होकर उभरा। 
2019 के चुनाव के दौरान रवीश को दिए अपने इंटरव्यू में जब राहुल ने कहा कि 2004 का इकनॉमिक मॉडल 2010-11 तक आते-आते अपनी उपयोगिता खो चुका था तो लगा कि कितनी निर्ममता से राहुल ने अपनी ही सरकार के कामों का पोस्टमार्टम कर लिया है।
हाल ही में ‘राष्ट्रीय संविधान सम्मेलन’ के अपने भाषण में राहुल ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी को अपनी राजनीति बदलनी होगी, कांग्रेस ने भी गलतियाँ की है।’ सुनकर मन में राहुल के लिए सम्मान पैदा हुआ। ऐन चुनाव के बीचों बीच अपनी ही पार्टी की सरकार के लिए इस किस्म की साफगोई कैसे साध ली गई?
भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल का ट्रांसफॉर्मेशन किया है और मैं समझती हूँ कि भारत जोड़ो यात्रा का विचार राहुल की व्यक्तिगत छवि को सुधारने के लिए आया होगा। अब इसे इस तरह से देखिए कि यदि छवि खराब करने का उपक्रम नहीं किया गया होता तो क्या भारत जोड़ो यात्रा की जाती?
मैं समझती हूँ, नहीं, क्योंकि एक अनिच्छुक और गैर महत्वाकांक्षी राजनेता जो मनमौजी है, जो राजनीति की पेचिदगियों से दूर रहता है। अपनी मस्ती में जीता है उसे क्या पड़ी थी कि वह भारत को समझने निकलता! मगर पप्पू से राहुल गाँधी तक के सफर को पाटते हुए राहुल आज जन नायक हो चले हैं।
हो सकता है कि इस बार भी सरकार न बदले। फिर से राजा बाबू ही प्रधानमंत्री हों, फिर से राहुल गाँधी को तरह-तरह से बदनाम करने, आरोप लगाने और मुश्किलें पैदा करने का उनका काम जारी रहे, मगर देश ने राहुल के रूप में एक नेता पा लिया है।
मुझे पता है ट्रोल की जाऊँगी, फिर भी कहूँगी कि राहुल के रूप में हम एक साधारण इंसान को नायक होते देख रहे हैं, जो असफल होने के बावजूद अपनी पथरीली राह पर न सिर्फ चल रहा है, बल्कि क्रूर प्रतिद्वंद्वी को भी उस पर चलने के लिए मजबूर कर रहा है। 
नोट - यदि आप विरोधी हैं, तब भी एक बार लखनऊ के राष्ट्रीय संविधान सम्मेलन का राहुल गाँधी का भाषण आपको जरूर सुनना चाहिए।
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*स्रोत: फेसबुक 

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