तो क्या है चुनाव का मैसेज? सबसे बड़ा यह कि अहंकार किसी का नहीं रहता। इस चुनाव के शुरू होने तक या यह कहिए मंगलवार सुबह तक भी प्रधानमंत्री मोदी यह समझ रहे थे कि वे देश की ऐसी ताकत बन गए हैं जो इससे पहले कभी नहीं थी। न भूतो न भविष्यति!
मगर मतगणना शुरू होते ही खबर आई कि बनारस से मोदी जी पीछे चल रहे हैं। हड़कंप मच गया। वैसे तो यह सामान्य बात है। चुनाव में प्रत्याशी आगे पीछे होते रहते हैं। मगर मोदी जी और उनका गोदी मीडिया यह मानता ही नहीं था कि मोदी जी भी पीछे हो सकते हैं। चाहे कुछ ही देर को हों। इलेक्शन कमीशन की साइट पर आ गया। मगर चैनल वाले दिखाने की हिम्मत नहीं कर पाए। जब यू ट्यूब पर चला, सोशल मीडिया पर चला तो एकाध चैनल ने हल्की सी पट्टी चलाई और फौरन हटा ली। एक डर का वातावरण था।
मगर यूपी से फिर जो लहर चली थोड़ी देर में वह आंधी बन गई। और मोदी के साथ योगी को भी करारा झटका दे गई। मोदी योगी उनके भक्त, गोदी मीडिया किसी को उम्मीद नहीं थी कि यूपी में यह माहौल होगा। मगर इस चुनाव में दो बड़े नायक बन कर उभरे राहुल गांधी और अखिलेश यादव।
राहुल ने कहा था यूपी सबसे बड़ा उलटफेर करेगी। इंडिया गठबंधन 50 सीटों पर जीतेगी। अखिलेश ने भी ऐसा ही कहा था। जबकि गोदी मीडिया के एक्जिट पोल इंडिया को पांच सीटे भी देने को तैयार नहीं थे।
मगर जनता ने मोदी और योगी दोनों का अहंकार तोड़ दिया। बता दिया कि वोट काम करने से मिलते हैं। बातों से नहीं। बुलडोजर लोगों का दिल नहीं जीत सकता।
इस चुनाव ने दोनों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। सारे नतीजे अभी आना बाकी हैं। मुकाबला कांटे का है। क्षेत्रीय दलों पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। मोदी जी का मैं अकेला सब पर भारी का गुमान खत्म हो गया। वे तो बीजेपी को ही कुछ नहीं समझते थे। एनडीए को कुछ मानने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। जो हमेशा से भाजपा के सहयोगी रहे। खुद को नेचुरल अलायंस कहते थे उन शिवसेना और अकाली दल को न केवल अलग कर दिया बल्कि उनके खिलाफ खूब बोले भी। मगर अब कल वे एनडीए की मीटिंग बुला रहे हैं।
बीजेपी में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। पूरा चुनाव मोदी जो के नाम पर लड़ा गया। मोदी सरकार, मोदी परिवार, मोदी तीसरी बार। हर जगह सिर्फ मोदी मोदी। भाजपा का तो कहीं नाम ही नहीं। संघ जिसने मोदी को बनाया और मोदी क्या सारी भाजपा ही उसकी बनाई हुई है उसके लिए भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने कह दिया कि हमें अब उसकी जरूरत नहीं।
जैसे शिवसेना और अकाली दल को उठाकर फैंक दिया वैसे ही संघ को भी अनावश्यक करार दिया। जनता को तो पहले ही कुछ नहीं समझते थे। उसकी बेरोजगारी, महंगाई जैसी समस्याओं की बात तक नहीं करते थे। अभी कांग्रेस अध्यक्ष खरगे जी ने बताया था कि उन्होंने पिछले दो हफ्ते के आंकड़े इकट्ठे किए और उसमें मोदी जो ने 750 से ज्यादा बार सिर्फ मोदी मोदी बोला। और एक बार भी रोजगार नौकरी का नाम नहीं लिया।
मतलब आज जनता की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। और मोदी जी के लिए वह बात करने का भी विषय नहीं। जनता ने इसी का जवाब दिया है।
2019 में 303 सीट दी थीं बीजेपी को अब 240 के करीब रोक दिया है। मतलब सामान्य बहुमत से भी पहले।
इसे क्या कहते हैं? नकारना। जी हां जनता ने मोदी जो को नकार दिया है। दस साल झेला। अब और नहीं।
प्रधानमंत्री कौन बनेगा पता नहीं। लेकिन अगर मोदी जी भी बनते हैं तो उनका वह भौकाल अब नहीं रहेगा। बनारस से कितने वोटों से जीतेंगे यह भी अभी यह लिखने तक पता नहीं। मगर जितने से भी जीतें उन शिवराज सिंह चौहान से बहुत पीछे होंगे जिन्हें उन्होंने बिना कारण मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था। शिवराज आठ लाख से ज्यादा वोटों से जीते हैं। विनम्रता की जीत। हालत यह थी कि जब शिवराज मुख्यमंत्री थे तो मोदी उनके नमस्कार का भी जवाब नहीं देते थे। और जो मध्य प्रदेश में 2023 में विधानसभा में भाजपा की जीत हुई है। वह उन्हीं कि वजह से। उनकी लाडली बहन चली।
तो अब यह बातें तो बीजेपी में होंगी कि शिवराज आठ लाख वोटों से जीतते हैं। और मोदी उनके आधे से भी नहीं। चौथाई से भी जीतना मतलब दो लाख से भी बड़ी बात हो रही है।
इस जीत के साथ और यूपी में बड़ी हार के साथ अगर मोदी प्रधानमंत्री भी बनते हैं तो राजनाथ सिंह और गडकरी जैसे वरिष्ठ नेता अब किनारे नहीं रहेंगे। वाजपेयी के समय में जैसे सभी नेता बराबर सम्मान पाते थे। सबका महत्व था वह दिन भाजपा में वापस आ सकता है।
और इसका पूरा श्रेय जाता है राहुल गांधी को। उनकी कन्सिसटेन्सी ( निरंतरता) निराश नहीं होना, साहस और मेहनत ने यह तस्वीर बदली है। पता नहीं क्या होगा। हो सकता है इन्डिया की सरकार बन जाए। नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू पाला बदल लें। कुछ भी हो सकता है। लेकिन अगर एनडीए की भी सरकार बनती है और मोदी जी ही प्रधानमंत्री बनते हैं तो कम से कम यह मिथ तो टूट जाएगा कि मोदी को हराया नहीं जा सकता।
लोकतंत्र की वापसी। पहले जैसे चुनाव होते थे वैसे वापस होने की शुरूआत। हार जीत को खेल की भावना से लेना फिर शुरू होना भी बड़ी जीत है।
अभी तो हाल यह था कि रात तक कहा जा रहा था कि समाजवादी पार्टी यूपी में दंगा करवा रही है। मतलब समाजवादी पार्टी ने कहा कि सचेत रहो तो इसे उन्होंने ऐसे पेश किया कि सपा लोगों को भड़का रही है। रात को कई सपा के नेताओं को घरों में नजरबंद किया गया। मगर सुबह मतगणना शुरू होते ही माहौल बदल गया।
इस चुनाव में अगर दो लोगों का ग्राफ गिरा है मोदी और योगी का तो दो का ग्राफ बढ़ा भी है। राहुल और अखिलेश का। राहुल की हिम्मत तो लाजवाब रही ही। अखिलेश का पीडीए का फार्म्यूला भी जबर्दस्त चला। पीडीए मतलब पी से पिछड़ा डी से दलित और ए से अल्पसंख्यक। तीनों एकजूट हो गए। इसमें खास बात यह है कि पिछड़ों में गैर यादव भी अखिलेश के साथ आए। और दलितों का आना तो निर्णायक रहा। यह तो सबको मालूम था कि दलित मायावती से टूटा है। मगर वह भाजपा में न जाकर अखिलेश और कांग्रेस के साथ आया यह बड़ी बात थी। एक कहानी जबर्दस्ती की बनाई जा रही थी कि दलित सपा के साथ नहीं जा सकता। इस चुनाव ने यह धारणा तोड़ दी। संविधान के नाम पर, आरक्षण के नाम पर, जाति गणना के नाम पर दलित और पिछड़े एक हो गए। और अल्पसंख्यक भी मायावती की तरफ जरा भी नहीं गया। सपा और कांग्रेस में उसने अपना विश्वास बनाए रखा।
चुनाव हो गए। लोकतंत्र और जनता जीत गई। मोदी और योगी मानें या नहीं मानें जनता ने दोनों को कड़ा सबक सिखाया है। दोनों का अहंकार इतना बढ़ गया कि दोनों एक दूसरे को भी मानने को तैयार नहीं थे। चुनाव ने बताया कि जनता दोनों को मानने को तैयार नहीं है। जनता को अहंकार नहीं भाता।
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साभार: नया इंडिया
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