ओम बिड़ला को जब याद किया जाएगा, तो लोगों के जेहन मे भावहीन सूरत उभरेगी। सदन के सबसे उंची गद्दी पर बैठा शख्स, जो संसदीय मर्यादाओं को तार तार होते सदन मे अनजान बनकर मुंह फेरता रहा।
मावलंकर, आयंगर, सोमनाथ चटर्जी और रवि राय ने जिस कुर्सी की शोभा बढाई, उसे उंचा मयार दिया.. वहीं ओम बिड़ला इस सदन की गरिमा की रक्षा मे अक्षम स्पीकर के रूप मे याद किये जाऐंगे।
पांच साल तक, ओम बिड़ला के दौर मे संसद रबर स्टाम्प बनी रही।
सदन बहस करने से बचने का अड्डा हुआ...
सत्ता पक्ष कुछ भी कहे, अभय..
और विपक्ष को मुश्किल से दिये मोैको मे भी मूक बना देने वाले अध्यक्ष ओम बिड़ला थे।
कही सामान्य कानून मनी बिल बनकर पास होते रहे तो कभी सांसदों को सस्पेंड़ कर विपक्षहीन कार्यवाही चलती रही। जिसकी सदारत मे सदन के भीतर मे बैठ जा मुल्ले गूंजा, और अध्यक्ष ने आंखें फेर ली।
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सदन जितना आंखों के सामने चलता है, उससे ज्यादा परदे के पीछे। कौन से सवाल लिए जाऐंगे, कौन से रिजैक्ट होे।
कौन सा सांसद बोलेगा, किसे मौका नही देंगे। किसके घंटे भर की सस्ती जोकरपंथी, संसद के इतिहास मे लिखी जाएगी, और किसके पांच मिनट के भाषण को कार्यवाही से मिटा दिया जाएगा।
और संसद का टीवी किसके उपर कैमरा ताने रखेगा, और कब वक्ता के पूरे दस मिनट के भाषण मे संसद के झूमर पर टिका रहेगा??
सब तय करने का अधिकार ओम बिड़ला को था।
और वे, जो सदन के अभिभावक बनाऐ गए थे, दलो के दलदल से उपर, न्यायाधीश की कुरसी से नवाजे गए थे, उस पद की गरिमा से पतनशील हो,
मामूली पिटठू बनकर रह गए।
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सबसे ज्यादा शर्मनाक, और खतरनाक काम था - विपक्ष को बाहर कर, खाली सदन से नई न्याय संहिता पर मुहर लगवाना।
150 साल पुराने, ट्राइड, टेस्टेड और इवॉल्यूशन की नैचुरल प्रक्रिया से बनी भारत की संपूर्ण न्याय प्रणाली को आमूलचूल बदलने वाला बिल, मिनटों मे पास हो गया।
बिना बहस, यह अधूरा, ड्रेकोनियन, दमनकारी, अंग्रेजों के कानून से कठोर और एन्टी डेमोक्रेसी प्रावधानो वाली भारतीय न्याय संहिता, राष्ट्रपति से दस्तखत हो चुकी है। किसी भी दिन नोटिफाई होकर लागू होगी।
और उसके बाद गले से आवाज भी निकालना, छह माह की बिना ट्रायल जेल का सबब बनेगा। आम कानून को पीएमएलए बना दिया गया है। प्रावधानों को ऐसा महीन बुना गया है कि जब जहां मर्जी हो, एक थानेदार आपका जीवन नष्ट कर देगा। दूसरी ओर आपके न्याय की गुहार, सुनवाई अयोग्य मानकर ठुकरा देगा।
यह न्याय संहिता, प्राकृतिक न्याय और सुनवाई के अधिकारों से चतुराई भरा महीन खेल करती है। इस कानून के लागू होने के बाद भारत जानेगा, कि असली मजबूत सरकार, असली पुलिस राज और सराकरी आतंक क्या होता है।
और जब कोई हिंदुस्तानी इसमे फंसेेगा, तो इस पार्टी का समर्थक रहा हो या विरोधी - वह मोदी-2 और ओम बिड़ला को दिल की अनंत गहराइयों से..
सदियों तक शाप देगा।
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सुनते है कि स्पीकर पद की मांग, तेलगूदेशम ने की है। यह शुभ संकेत है। एक हंग पार्लियामेण्ट मे विपक्ष की आवाज, संसदीय मर्यादाऐं का हनन....
दलो केे भीतर तोड़फोड, सांसद खरीदी और नीच तकनीकों के इस्तेमाल होने की छूट देने के लिए, किसी ओम बिड़ला जैसे भाजपाई को संसद की आसंदी नही मिलनी चाहिए।
जीएमसी बालयोगी जैसे हरदिल अजीज, संतुलित लोकसभाध्यक्ष देने वाले तेलूदेशम और नायडू पर मोदी गैंग के भाजपाईयों से ज्यादा भरोसा किया जा सकता है।
खुद तेलगू देशम, जेडीयू और दूसरे दलो की तोड़फोड़ की तमाम गुंजाइश खत्म हो जाएगी, अगर सदन की बागडोर एक संतुलित मष्तिष्क वाले क्षेत्रीय दल के हाथ मे हो।
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नई संसद के सांसद, वे पक्ष के हो या विपक्ष के, याद रखे - बंदर के हाथ माचिस नही होनी चाहिए।
और संसद की चाभी किसी बिडला के हाथ नही होनी चाहिए। आसंदी पर हमारी और उनकी भलाई इसी मे होगी।
देश को और ओम बिड़ला नही चाहिए।
लोकसभा के माथे पर, और काले दाग नहीं चाहिए।
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*स्रोत: फेसबुक
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