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'मनःकामना' या 'मनोकामना'? हिंदी का नुक़सान करने वाले कारकों में पत्रकारिता भी शामिल

- उमेश जोशी* 

हिंदी पत्रकारिता को 198 साल हो गए। 1826 में 30 मई को हिंदी का पहला अख़बार 'उदन्त मार्तण्ड' प्रकाशित हुआ था। कानपुर के पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता (उस समय का कलकत्ता) से इस अखबार का प्रकाशन शुरू किया था। वे इस आख़बार के संपादक के साथ प्रकाशक भी थे। वैसे पेशे से वकील थे। प्रकाशन के लिए कोलकाता का चयन करने के पीछे एक ख़ास वजह थी।
जिस वक़्त इसका प्रकाशन किया गया था उस समय अँगरेज़ों का राज था। कोलकाता अँगरेज़ों (कामिल बुल्के ने यही शब्द सही माना है और हिंदीभाषी बुल्के का शब्दकोश प्रामाणिक मानते हैं) का बड़ा केंद्र था। वहाँ अँगरेज़ी, उर्दू और दूसरी भाषाओं के अख़बार छप रहे थे, लेकिन हिंदी भाषा के लोगों के पास उनकी अपनी भाषा का कोई अख़बार नहीं था। उस दौर में हिंदीभाषियों को अपनी भाषा के समाचार-पत्र की ज़रूरत महसूस हो रही थी। जरूरत महसूस करते हुए पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने वहाँ से उदंत मार्तंड अखबार का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अख़बार था। इस तरह हुआ हिंदी पत्रकारिता का जन्म। यूँ कहें, आज हिंदी पत्रकारिता का जन्मदिन दिन है।
दो शताब्दी पूरी होने में दो साल कम हैं। बहुत लंबा सफर तर किया है हिंदी पत्रकारिता ने। इस अवधि में अख़बारी तकनालॉजी में अद्भुत, अकल्पनीय विकास हुआ है। लेकिन हिंदी भाषा का नुक़सान करने वाले कारकों में पत्रकारिता भी शामिल है। किसी भी भाषा को अनुशासित रखने के लिए उसका व्याकरण बेहद ज़रूरी है वरना वह तटबंध टूटे नदी समान हो जाएगी। तट बंध टूटने के बाद नदी कितना नुक़सान करती है, इसका कोई भी आकलन नहीं कर सकता। मेरा मानना है कि व्याकरण का अनुकरण नहीं करना है तो स्कूलों के पाठ्यक्रम से व्याकरण हटा देना चाहिए।
पोस्ट लंबी हो गई है इसलिए पत्रकार कई दशकों एक ही ढर्रे पर जो ग़लतियाँ किए जा रहे हैं, उनकी एक-दो बानगी ही दूँगा। हालाँकि ऐसे दर्ज़नों उदाहरण हैं। कोई पत्रकार उन्हें दुरुस्त करने की कोशिश भी नहीं करता। यह कह कर बात टाल देते हैं कि अब यह चलन में आ गया है। चलन में लाने वाले कौन हैं? कुछ भी ग़लत चलन में है तो क्या उसे दुरुस्त नहीं किया जाना चाहिए?
हरेक अख़बार और चैनल लिखते-बोलते हैं- शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया।
अब इसी से मेलखाता एक वाक्य देखें- नौकर को सुरक्षा के लिए भेज दिया। वाक्य संरचना के हिसाब से शव (निर्जीव) और नौकर (सजीव) में कोई फ़र्क़ है?
मुझे याद नहीं आता कि किसी हिंदी चैनल ने 'मनःकामना' लिखा या बोला हो जबकि शुद्ध यही है। सभी चैनल 'मनोकामना' लिखते-बोलते हैं। अख़बार भी पीछे नहीं हैं। आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर मेरी मनःकामना है कि वो अपनी 'मनोकामना' भूल जाएँ।
विसर्ग संधि के नियम के मुताबिक शुद्ध शब्द 'नीरोग' है लेकिन हिंदी पत्रकारों ने 'निरोग' लिख कर इसे रुग्ण कर दिया। 'आधिकारिक' शब्द तो अधिकांश हिंदी पत्रकारों को हमेशा ग़लत लगता है और वे अधिकारपूर्वक इसे 'अधिकारिक' ही लिखते हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं। ग़लत अँगरेज़ी लिखने वाला अँगरेज़ी भाषा की पत्रकारिता नहीं कर सकता तो फिर ग़लत हिंदी लिखने वाला हिंदी भाषा की पत्रकारता कैसे करता है और उसे कैसे बर्दाश्त किया जाता है!
अब व्याकरण से इतर एक उदाहरण देता हूँ। हिंदी पत्रकार कई बार दिमाग़ लगाए बिना अशुद्ध लिखते और बोलते हैं- 'कलियुगी' पति ने 'अपनी' पत्नी की हत्या कर दी। अरे भाई! आप भी कलियुग में हैं इसलिए आप भी किसी के 'कलियुगी पति' हैं; और पत्नी 'अपनी' ही होती है; किसी अन्य की पत्नी तो चाची, ताई, भाभी, मामी होगी। दर्ज़नों नहीं, ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जिनका व्याकरण से कोई संबंध नहीं होता लेकिन वाक्य बेसिर-पैर होते हैं। उन्हें अशुद्ध ही कहेंगे। कभी किसी संदर्भ में ऐसी ही अशुद्धियों का ज़िक्र करूँगा।
अब जैसी भी है यह हमारी मातृभाषा की पत्रकारिता है, इसे बेहतर बनाने की ज़िम्मेदारी भी हमारी ही है। यह ज़िम्मेदारी सभी पत्रकारों को मिल कर उठानी होगी।
(ग़लतियाँ मैं भी करता हूँ। लेकिन पता लगने के बाद उन्हें दुरुस्त करता हूँ। ग़लतियाँ इंगित करने वाले का आभार व्यक्त करता हूँ। ग़लतियाँ तभी सुधारेंगे जब पता लगेगा।)
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*वरिष्ठ पत्रकार

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